जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को जैन मुनि आचार्य विद्यानंद महाराज के जन्म शताब्दी समारोह में शामिल हुए। यह ऐतिहासिक समारोह भगवान महावीर अहिंसा भारती ट्रस्ट की ओर से आयोजित किया गया था। इस अवसर पर पीएम मोदी ने आचार्य विद्यानंद महाराज की स्मृति में एक विशेष डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। कार्यक्रम में ट्रस्ट की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को ‘धर्म चक्रवर्ती’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। इस सम्मान को ग्रहण करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “मैं खुद को इस उपाधि के योग्य नहीं मानता, लेकिन हमारी संस्कृति में संतों से जो भी मिलता है, हम उसे प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं। इसलिए मैं इस सम्मान को मां भारती को समर्पित करता हूँ।”
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि यह दिन इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि ठीक 28 जून 1987 को आचार्य विद्यानंद मुनिराज को ‘आचार्य’ की उपाधि दी गई थी। पीएम ने कहा, “यह केवल एक सम्मान नहीं था, बल्कि यह जैन संस्कृति को विचारों, संयम और करुणा से जोड़ने वाली एक पवित्र धारा भी थी। जब आज उनके जन्म के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तो वो ऐतिहासिक पल पुनः हमारी स्मृतियों में जीवंत हो उठता है।”
मोदी ने इस मौके पर दो बड़ी बातें कहीं। पहली, उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि आचार्य विद्यानंद मुनिराज एक ‘युग पुरुष’ और ‘युग दृष्टा’ थे। उन्होंने कहा कि उन्हें सौभाग्य मिला कि उन्होंने आचार्य विद्यानंद जी को निकट से देखा और उनके आध्यात्मिक तेज को महसूस किया। पीएम ने कहा, “आज जब हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं, तो मुझे इस मंच से भी उनका वही स्नेह और निकटता महसूस हो रही है।” दूसरी बात में मोदी ने भारतीय संस्कृति की महानता को रेखांकित करते हुए कहा, “भारत दुनिया की सबसे प्राचीन और जीवित संस्कृति है। हम हजारों वर्षों से अमर हैं, क्योंकि हमारे विचार, सोच और दर्शन अमर हैं। इस अमरता का स्रोत हमारे ऋषि, मुनि, संत और आचार्य हैं, जिन्होंने भारत की आत्मा को दिशा दी और सदियों तक हमारी संस्कृति को जीवित रखा।”
बता दें, यह जन्म शताब्दी समारोह पूरे वर्ष भर देशभर में विभिन्न कार्यक्रमों के रूप में मनाया जाएगा। जैन समाज की ओर से भारत के कोने-कोने में विशेष आयोजन होंगे, जिसमें आचार्य विद्यानंद महाराज के जीवन, उनके उपदेशों और उनके द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाया जाएगा।
कौन थे आचार्य विद्यानंद महाराज?
आचार्य विद्यानंद महाराज जैन धर्म के महान संत, विद्वान और समाज-सुधारक थे। उनका जन्म 22 अप्रैल 1925 को बेलगावी (अब कर्नाटक) के शेदबल गांव में हुआ था। बहुत कम उम्र में उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग कर संन्यास ले लिया और पूरी ज़िंदगी संयम, साधना और सेवा में समर्पित कर दी। विद्यानंद जी को जैन धर्म के सबसे बड़े विद्वानों में माना जाता है। उन्होंने 8,000 से अधिक जैन ग्रंथों के श्लोक कंठस्थ कर रखे थे। वे जैन दर्शन, नैतिकता और प्राकृत भाषा पर 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक थे।
उन्होंने देशभर में कई प्राचीन जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आचार्य विद्यानंद जी ने जीवनभर नंगे पांव यात्रा की, कठोर तप, ब्रह्मचर्य और गहन ध्यान का पालन किया। उनके जीवन का सबसे बड़ा योगदान यह था कि वर्ष 1975 में भगवान महावीर के 2,500वें निर्वाण महोत्सव के दौरान उन्होंने सभी जैन संप्रदायों की सहमति से आधिकारिक जैन ध्वज और अहिंसा प्रतीक तैयार करवाया, जो आज पूरी दुनिया में जैन धर्म की पहचान है।