जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
इंदौर के तुकोगंज क्षेत्र में रहने वाली 80 वर्षीय रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल नंदनी चिपलूणकर डिजिटल ठगी के ऐसे शातिर जाल में फंसने से बाल-बाल बच गईं, जहां उन्हें “डिजिटल अरेस्ट” का डर दिखाकर 1 करोड़ रुपए अकाउंट में ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया जा रहा था। यह पूरी साजिश साइबर अपराधियों ने एक योजनाबद्ध तरीके से रची थी। लेकिन महिला की समझदारी और बैंक अधिकारी की सजगता के चलते यह ठगी होने से पहले ही नाकाम हो गई।
घटना 27 मई की सुबह की है, जब नंदनी चिपलूणकर को एक महिला का फोन आया। फोन करने वाली ने खुद को TRAI (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) की अधिकारी बताया और कहा कि उनकी सिम बंद की जा रही है। जब नंदनी ने वजह पूछी, तो कॉल कथित तौर पर महाराष्ट्र के कोलाबा पुलिस स्टेशन ट्रांसफर कर दी गई। वहां एक शख्स ने खुद को डीसीपी अनंत कुमार आर्या बताते हुए कहा कि उनका संबंध जेट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल से है और उनके नाम पर कई संदिग्ध बैंक ट्रांजैक्शन हुए हैं।
नंदनी ने जब सभी आरोपों से इनकार किया, तो कॉल एक और महिला को ट्रांसफर की गई जिसने खुद को सीबीआई अधिकारी रश्मि शुक्ला बताया। इस महिला ने नंदनी पर नरेश गोयल के साथ प्रोजेक्ट्स में शामिल होने का आरोप लगाते हुए धमकाया कि उन पर पहले से 267 एफआईआर दर्ज हैं। इतना ही नहीं, उन्हें वीडियो कॉल पर लिया गया और हिदायत दी गई कि वे कमरे से बाहर न जाएं और किसी से बात न करें।
इस दवाब में आकर नंदनी ने अपने पति या नौकर से बात नहीं की और खुद को कमरे में बंद कर लिया। ठगों ने कहा कि गिरफ्तारी से बचना है तो उनके द्वारा दिए गए अकाउंट में एक करोड़ रुपए जमा कराएं। भयभीत नंदनी ने अपने अकाउंट में जमा 52 लाख रुपए और 50 लाख की फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़कर रकम ट्रांसफर करने का फैसला किया और सीधे एसबीआई बैंक पहुंच गईं।
लेकिन यहीं पर मामला पलट गया। बैंक मैनेजर गीतांजलि गुप्ता को अचानक इतने बड़े अमाउंट की निकासी पर शक हुआ। उन्होंने तुरंत सर्वर डाउन होने की बात कहकर ट्रांजैक्शन को रोका और नंदनी से बातचीत में पूरी स्थिति को समझा। इसके बाद उन्होंने तत्काल एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया को जानकारी दी।
क्राइम ब्रांच की टीम ने सक्रियता दिखाते हुए बुजुर्ग महिला का मोबाइल बंद करवाया और दो दिनों तक लगातार उनसे संपर्क में रही। रविवार को एडिशनल डीसीपी खुद नंदनी के घर पहुंचे और उन्हें समझाया कि “डिजिटल अरेस्ट” जैसी कोई वैधानिक प्रक्रिया नहीं होती। साथ ही बुजुर्ग दंपती की उम्र को देखते हुए एफआईआर उनके घर पर ही दर्ज की गई।
पीड़िता के 85 वर्षीय पति भी LIC में मैनेजर रह चुके हैं। मामले में साइबर सेल ने उस नंबर की जांच शुरू कर दी है जिससे ठगों ने कॉल किया था। हैरानी की बात यह है कि जब महिला ने दो दिन बाद अपना मोबाइल ऑन किया, तो फिर से कॉल्स आना शुरू हो गए।