जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भोपाल के कोहेफिजा थाने में कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद के खिलाफ धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेजों के जरिए मान्यता प्राप्त करने का मामला दर्ज किया गया है। आरोप है कि मसूद ने फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर अपने कॉलेज इंदिरा प्रियदर्शनी कॉलेज को मान्यता दिलवाई थी। यह कार्रवाई जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश पर की गई है।
हाईकोर्ट के आदेश पर दर्ज हुई FIR
एडिशनल डीसीपी शालिनी दीक्षित ने बताया कि कोर्ट के निर्देशों के अनुसार केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है। दरअसल, सोमवार को जस्टिस अतुल श्रीधरन की अदालत ने सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि इतने लंबे समय तक कॉलेज का संचालन बिना राजनीतिक संरक्षण संभव नहीं हो सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने भोपाल कमिश्नर को तीन दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करने और इसकी जानकारी अदालत को सौंपने का आदेश दिया था।
कॉलेज की मान्यता रद्द, नए एडमिशन पर रोक
इससे पहले उच्च शिक्षा विभाग ने इंदिरा प्रियदर्शनी कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी थी। हालांकि, छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कॉलेज को फिलहाल संचालित करने की अनुमति दी, लेकिन नए दाखिलों पर पूरी तरह से रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने साफ किया कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक कॉलेज में एडमिशन की प्रक्रिया नहीं होगी।
SIT करेगी जांच, 90 दिन में रिपोर्ट
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया है। इस तीन सदस्यीय टीम का नेतृत्व एडीजी संजीव शमी करेंगे। कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि एसआईटी 90 दिनों के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट पेश करे।
फर्जी दस्तावेजों से ली गई थी मान्यता
जांच में सामने आया कि अमन एजुकेशन सोसाइटी, जिसके सचिव आरिफ मसूद हैं, ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कॉलेज की मान्यता प्राप्त की थी। आरोप है कि सोसाइटी ने कूटरचित दस्तावेजों के जरिए सेल डीड तैयार करवाई और इसे पंजीयन कार्यालय में गलत तरीके से दर्ज भी दिखाया।
शिकायत से शुरू हुआ मामला
इस पूरे मामले की शिकायत पूर्व विधायक ध्रुवनारायण सिंह ने की थी। उनकी शिकायत के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने जांच की और यह पाया कि कॉलेज को दिए गए एनओसी और मान्यता फर्जी कागजातों पर आधारित थे। इसके बाद विभाग ने कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी थी।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद दर्ज हुई एफआईआर ने इस मामले को और गंभीर बना दिया है। अब एसआईटी जांच के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि फर्जीवाड़े में किस स्तर तक राजनीतिक संरक्षण मिला और इसमें कौन-कौन से अधिकारी शामिल थे।