MP में शराब पर बड़ा बदलाव: 1 अप्रैल से लागू होगी नई नीति, 450 करोड़ का राजस्व नुकसान; खुलेंगे लो अल्कोहलिक बेवरेज बार, बाहर से शराब लोकर पीने पर रोक नहीं !

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्य प्रदेश में शराब नीति में अभूतपूर्व बदलाव होने जा रहा है, जो राज्य की आबकारी व्यवस्था को पूरी तरह से नया रूप देगा। 1 अप्रैल से लागू होने वाली नई शराब नीति के तहत, राज्य के 19 पवित्र शहरों में 47 शराब की दुकानें बंद कर दी जाएंगी। इन शहरों में उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मंडला और मंदसौर जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं, जहां अब शराब की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगेगी। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 24 जनवरी को शराबबंदी की घोषणा की थी, जो अब एक महत्वपूर्ण कदम बनकर सामने आई है।

इस निर्णय से मध्य प्रदेश सरकार को करीब 450 करोड़ रुपये का नुकसान होगा, लेकिन यह बदलाव धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वहीं, इसके साथ ही, नए ‘लो अल्कोहलिक बेवरेज बार’ खोले जाएंगे, जहां केवल बीयर, वाइन और रेडी-टू-ड्रिंक अल्कोहल पेय पदार्थों की अनुमति होगी, जबकि स्प्रिट का सेवन प्रतिबंधित रहेगा। यह कदम शराब की लत को नियंत्रित करने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।

हालांकि, इस नीति का दूसरा पहलू यह है कि जो लोग इन शहरों में शराब की खरीदारी करना चाहते हैं, वे अब बाहर से शराब लेकर पीने में कोई परेशानी महसूस नहीं करेंगे, क्योंकि इस मामले में कोई जुर्माना नहीं लगेगा। यही नहीं, रेस्तरां और कमर्शियल आयोजनों के लिए भी नई नीति लागू होगी, जिससे आयोजकों को फायदा होगा और राज्य को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने नई आबकारी नीति को मंजूरी मिलने के बाद 24 जनवरी को शराब की बिक्री पर रोक लगाने का ऐलान किया था। इस निर्णय से एमपी सरकार को आबकारी राजस्व में 450 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। जानकारी के लिए बता दें कि मध्य प्रदेश में 460 से 470 शराब और बीयर बार हैं। 1 अप्रैल से 19 जगहों पर शराब की बिक्री पर रोक के चलते 47 शराब की दुकानें बंद हो जाएंगी। अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में मध्य प्रदेश में 3600 मिश्रित शराब की दुकानें लगभग 15200 करोड़ रुपये का राजस्व लाएंगी।

वहीं, शराब की दुकानों के ठेकेदारों के लिए ई-बैंक गारंटी अनिवार्य कर दी जाएगी, जिससे वित्तीय पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित होगी। इस बदलाव से जहां राज्य को राजस्व का नुकसान हो सकता है, वहीं इसे लेकर राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाओं का आना तय है, क्योंकि यह निर्णय सरकार और जनता के बीच नए विवादों और बहस का कारण बन सकता है।

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