जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
कांग्रेस पार्टी में इन दिनों घमासान मचा हुआ है, और पार्टी की अंदरूनी राजनीति भी इन बदलावों के साथ नई करवट ले रही है। शुक्रवार को कांग्रेस ने राज्यों में प्रभारियों के पद पर बड़ा फेरबदल किया, और पार्टी में एक नई रणनीतिक दिशा की ओर कदम बढ़ाया। मध्य प्रदेश में अब तक के प्रभारी के तौर पर खींचतान चल रही थी, लेकिन अब राजस्थान के बायतु से कांग्रेस विधायक हरीश चौधरी को मध्य प्रदेश कांग्रेस का नया प्रभारी बना दिया गया है। हरीश चौधरी जो पहले पंजाब कांग्रेस के प्रभारी रह चुके हैं, अब मप्र में पार्टी की जड़ें मजबूत करने की जिम्मेदारी उठाएंगे।
उधर, बिहार कांग्रेस की जिम्मेदारी अब युवा नेता कृष्णा अल्लाहवीरू के हाथों में सौंप दी गई है, जबकि अनुभवी मोहन प्रकाश से यह जिम्मेदारी वापस ले ली गई है। लंबे समय तक विभिन्न राज्यों के प्रभारियों में शामिल रहे मोहन प्रकाश के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है। इस बदलाव ने बिहार में कांग्रेस की दिशा को लेकर नई उम्मीदें जगाई हैं, लेकिन सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह निर्णय पार्टी के भीतर की कड़ी राजनीति का हिस्सा है या फिर यह एक रणनीतिक कदम है?
राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा अपनी कुर्सी बचाने में सफल रहे हैं। पिछले कुछ समय से उनके स्थान पर किसी नए चेहरे की अटकलें तेज थीं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने इस बार भी उन पर भरोसा जताया है। याद दिला दें कि दिसंबर 2022 में अजय माकन के इस्तीफे के बाद रंधावा को राजस्थान की कमान सौंपी गई थी। इससे पहले सितंबर 2022 में अशोक गहलोत समर्थक विधायकों द्वारा कांग्रेस विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने से पार्टी में जबरदस्त उथल-पुथल मच गई थी। उस समय अजय माकन ने इस पूरे घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी और कांग्रेस आलाकमान को रिपोर्ट सौंपी थी। इसी विवाद के बीच राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में पहुंची और इसी दौरान अजय माकन को हटाकर रंधावा को प्रभारी बना दिया गया।
हालांकि, राजस्थान में प्रभारी बदलने की अटकलें इस बार भी जोरों पर थीं, लेकिन पार्टी हाईकमान ने रंधावा को बरकरार रखते हुए साफ संकेत दे दिया है कि फिलहाल किसी बड़े बदलाव की गुंजाइश नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि इस दौड़ में मीनाक्षी नटराजन का नाम भी सामने आया था, लेकिन अंततः उन्हें तेलंगाना की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
इस फेरबदल से कांग्रेस संगठन की रणनीति साफ झलकती है—अनुभव और युवा नेतृत्व के संतुलन के साथ पार्टी आगामी चुनावी चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर रही है। अब देखना यह होगा कि यह बदलाव कांग्रेस के लिए कितना फायदेमंद साबित होता है और क्या पार्टी भीतर जारी अंदरूनी खींचतान को थामने में कामयाब हो पाती है या नहीं!