जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साइप्रस की ओर से देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III’ प्रदान किया गया है। यह सम्मान राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस ने निकोसिया स्थित प्रेसिडेंशियल पैलेस में एक विशेष समारोह में दिया। पीएम मोदी ने इसे न केवल अपने लिए, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की क्षमताओं और आकांक्षाओं का सम्मान बताया। उन्होंने इसे भारत की संस्कृति, भाईचारे और “वसुधैव कुटुम्बकम” की विचारधारा का वैश्विक स्वीकार माना।
प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस के दो दिवसीय दौरे पर हैं और यह यात्रा केवल एक कूटनीतिक दौरा नहीं, बल्कि एक वैश्विक संदेश है – आतंकवाद के खिलाफ भारत को समर्थन, चीन और तुर्किये को चेतावनी और भारत के आर्थिक व डिजिटल प्रभाव का विस्तार। प्रेसिडेंशियल पैलेस में हुए गर्मजोशी से स्वागत के बाद पीएम मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस के बीच गहन बातचीत हुई, जिसमें द्विपक्षीय सहयोग, यूरोपीय संघ के साथ संबंध, IMEC कॉरिडोर और आतंकवाद जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।
राष्ट्रपति निकोस ने साफ शब्दों में कहा कि साइप्रस भारत के साथ आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है। दोनों नेताओं ने संयुक्त प्रेस वार्ता में IMEC (India-Middle East-Europe Economic Corridor) पर भी बात की, जिसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक जवाब माना जा रहा है। अमेरिका, यूरोपीय संघ, UAE, सऊदी अरब और इज़राइल इस परियोजना के साझेदार हैं, और अब साइप्रस इसमें अहम कड़ी के रूप में उभरा है।
यह दौरा उस वक्त हो रहा है जब तुर्किये लगातार उत्तरी साइप्रस पर अवैध कब्जे के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा हो रहा है। पाकिस्तान द्वारा हाल ही में ‘नॉर्थ साइप्रस’ को कश्मीर से जोड़ने की कोशिशों ने साइप्रस को भी आक्रोशित किया। ऐसे में पीएम मोदी की साइप्रस यात्रा तुर्किये और पाकिस्तान को सीधा राजनीतिक संदेश भी है – कि भारत और साइप्रस एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का पूरा सम्मान करते हैं।
पीएम मोदी ने भारत-साइप्रस सीईओ फोरम को भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने साइप्रस को यूरोप का प्रवेश द्वार बताया और कहा कि भारत में स्टार्टअप, डिजिटल पेमेन्ट्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में तेज़ी से बदलाव आ रहे हैं। भारत हर साल 100 अरब डॉलर से अधिक निवेश सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कर रहा है और इनोवेशन हमारी नई आर्थिक ताकत बन चुकी है।
भारत के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को लेकर भी पीएम ने बड़ी बात कही – कि साइप्रस को भी इस डिजिटल व्यवस्था में शामिल करने के लिए बातचीत चल रही है, और इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक आदान-प्रदान और तेज़ होगा।
यह गौर करने लायक है कि मोदी साइप्रस जाने वाले तीसरे भारतीय प्रधानमंत्री हैं – उनसे पहले इंदिरा गांधी (1983) और अटल बिहारी वाजपेयी (2002) ने इस देश का दौरा किया था। भारत और साइप्रस के बीच राजनीतिक रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं, लेकिन इतने उच्च स्तर की द्विपक्षीय यात्राएं कम ही होती हैं। 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और 2022 में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साइप्रस का दौरा किया था।
साइप्रस के साथ भारत के रिश्ते सिर्फ व्यापार या कूटनीति तक सीमित नहीं हैं। 2006 में लेबनान युद्ध के दौरान ‘ऑपरेशन सुकून’ में साइप्रस ने भारतीयों को निकालने में सहयोग दिया था। इसी तरह 2011 के लीबिया संकट में ‘ऑपरेशन सेफ होमकमिंग’ में भी साइप्रस भारत के साथ खड़ा रहा।
इतिहास भी इस दोस्ती का गवाह है – भारत ने साइप्रस को 1960 में स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद मान्यता दी थी, और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध 1962 में स्थापित हुए। संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में भी भारत ने साइप्रस की मदद की है। जनरल केएस थिम्मैया, पीएस ग्यानी और डीपी चंद जैसे वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारी UN मिशनों में साइप्रस में तैनात रहे। जनरल थिम्मैया का निधन 1965 में साइप्रस में ही हुआ था और उन्हें वहां अब भी सम्मानपूर्वक याद किया जाता है।
अब पीएम मोदी साइप्रस से सीधे कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कनानास्किस में आयोजित G7 समिट में हिस्सा लेने रवाना हो गए हैं। यहां उनकी कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी से पहली द्विपक्षीय मुलाकात होगी। ट्रूडो के समय भारत-कनाडा संबंधों में जो कड़वाहट आई थी, अब उससे रिश्तों को पटरी पर लाने की उम्मीद है।
इसके बाद पीएम 18 जून को क्रोएशिया भी जाएंगे – और यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली क्रोएशिया यात्रा होगी। जाग्रेब में वे क्रोएशियाई पीएम आंद्रेज प्लेंकोविच और राष्ट्रपति मिलानोविच से मुलाकात करेंगे।