हैदराबाद से जबलपुर लाए गए घोड़ों की मौत का मामला गहराया: एक घोड़ा ‘ग्लैंडर पॉजिटिव’, जानलेवा बीमारी का खतरा; हाईकोर्ट में भी पहुंचा मामला!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश के जबलपुर में हैदराबाद से लाए गए घोड़ों की मौत का मामला अब और गंभीर हो गया है। पहले ही 10 घोड़ों की रहस्यमयी मौत से पशुपालन विभाग और जिला प्रशासन में हड़कंप मचा था, लेकिन अब एक घोड़े की रिपोर्ट ग्लैंडर पॉजिटिव आने के बाद पूरे मामले ने संक्रामक बीमारी और अंतरराष्ट्रीय सट्टेबाजी के घालमेल का चौंकाने वाला रूप ले लिया है।

हालांकि संबंधित घोड़े की रिपोर्ट जीरो पॉजिटिव है, यानी अभी उसमें बीमारी के लक्षण सक्रिय नहीं हैं, लेकिन अन्य घोड़ों के लिए यह बेहद खतरनाक हो सकता है। पशु चिकित्सा विभाग ने दोबारा जांच के लिए दो घोड़ों के सैंपल भेजे थे, जिनमें से एक की पहले ही मौत हो चुकी है, उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई है। लेकिन एक अन्य जीवित घोड़ा पॉजिटिव पाया गया है, जिससे संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ गई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए भोपाल से विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम एक बार फिर जबलपुर भेजी जा सकती है।

बता दें, ग्लैंडर एक अत्यंत संक्रामक और घातक जीवाणुजनित बीमारी है, जो घोड़ों, गधों और खच्चरों को प्रभावित करती है। यह Burkholderia mallei नामक बैक्टीरिया के कारण होती है और इंसानों तक भी फैल सकती है। इसलिए, पशु चिकित्सा विभाग ने घोड़ों को एक-दूसरे से अलग रखने और निगरानी में रखने के सख्त निर्देश दिए हैं।

जानकारी के अनुसार, सचिन तिवारी नामक व्यक्ति ने 27 अप्रैल से 5 मई के बीच 57 घोड़े ट्रक के जरिए हैदराबाद से जबलपुर के रैपुरा गांव पहुंचाए थे। इन घोड़ों में से 8 की मौत 7 से 13 मई के बीच हो गई थी। इसके बाद पशु चिकित्सा विभाग सतर्क हुआ और सभी घोड़ों के सैंपल हिसार स्थित राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र भेजे गए। प्रारंभिक जांच में दो को छोड़ बाकी सभी की रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन अब सामने आए पॉजिटिव केस ने खतरे की घंटी बजा दी है। इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जयपुर निवासी लवान्या शेखावत ने दावा किया है कि ये सभी घोड़े हॉर्स पावर सुपर लीग (HPSL) के संचालक सुरेश पलादुगू के हैं। लवान्या ने हैदराबाद रेसकोर्स में घोड़ों पर हो रहे अत्याचार और उनके जरिए फिलीपींस में ऑनलाइन सट्टेबाजी का खुलासा किया था, जिसकी शिकायत PETA (पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स) के माध्यम से तेलंगाना सरकार तक पहुंची। इसके बाद रेसकोर्स पर छापा पड़ा, लेकिन उससे पहले ही सुरेश पलादुगू ने साक्ष्य मिटाने के लिए ये घोड़े अवैध रूप से जबलपुर भेज दिए।

लवान्या ने आरोप लगाया है कि रैपुरा के अस्तबल में रखे गए घोड़े अत्यंत महंगे और संवेदनशील हैं, जिन्हें न तो उचित खानपान मिला, न ही दवाइयां, और न ही खुले में रखने की व्यवस्था। ये घोड़े ऐसे नहीं हैं जिन्हें आम जानवरों की तरह बांध कर रखा जा सके, लेकिन वहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं थीं।

लवान्या ने बताया कि 24 अप्रैल से 3 जून तक पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी इस पूरे मामले पर निगरानी बनाए हुए थीं। उन्होंने हर अपडेट, रिपोर्ट और घटना की व्यक्तिगत जानकारी ली। लेकिन जो जांच रिपोर्ट सामने आई, उसमें कई बातें ‘ठीक’ बताई गई हैं, जिस पर संदेह जताया जा रहा है। लवान्या ने मांग की है कि इस रिपोर्ट की दोबारा समीक्षा की जाए।

हाईकोर्ट में भी पहुंचा मामला, जनहित याचिका दायर

23 मई को इस मामले को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में एडवोकेट उमेश त्रिपाठी ने जनहित याचिका दायर की। उन्होंने खुलासा किया कि सुरेश पलादुगू और उनके सहयोगियों ने काला घोड़ा-नीला घोड़ा नाम से घुड़दौड़ करवाई, जिसे ऐप के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंचाया गया और करोड़ों रुपए का ऑनलाइन सट्टा खेला गया। यह जानकारी फिलीपींस सरकार तक पहुंची, जिसने भारत सरकार को सूचित किया। नतीजतन तेलंगाना सरकार ने रेसिंग पर रोक लगा दी।

154 घोड़े गायब, गिरफ्तार होने से बचने की साजिश!

एडवोकेट त्रिपाठी ने बताया कि हर दौड़ने वाले घोड़े की एक यूनिक पासकोड आईडी होती है, जिसमें उसके मालिक की जानकारी दर्ज होती है। यदि ये सामने आ जाता कि घोड़े सुरेश पलादुगू के हैं, तो उनकी तत्काल गिरफ्तारी हो सकती थी। इसी से बचने के लिए 154 घोड़े देशभर में अलग-अलग स्थानों पर भेज दिए गए। कुछ को मारने की भी कोशिश की गई। अब यह मामला अदालत में है और समर वेकेशन के बाद सुनवाई होगी।

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