जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
अगर आप युवा हैं और सोचते हैं कि थायरॉइड या डायबिटीज सिर्फ उम्रदराज़ लोगों की समस्या है, तो ये खबर आपके लिए चेतावनी से कम नहीं है। भारत में हर 10 में से 1 युवा थायरॉइड और हर 11 में से 1 डायबिटीज का शिकार है। लेकिन जो बात ज़्यादातर लोगों को नहीं पता – वो ये है कि ये दोनों बीमारियां एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। और अगर आप सिर्फ एक बीमारी का इलाज कर रहे हैं, तो आप अनजाने में दूसरी बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं।
हालिया मेडिकल रिपोर्ट्स के मुताबिक, टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हर चौथे व्यक्ति को हाइपोथायरायडिज्म भी होता है – यानी थायरॉयड ग्रंथि का कम सक्रिय होना। यह स्थिति शरीर के मेटाबॉलिज्म और ऊर्जा स्तर दोनों को बुरी तरह प्रभावित करती है। खासतौर पर महिलाओं में यह कॉम्बिनेशन ज़्यादा देखा जा रहा है, जिससे वजन बढ़ना, थकावट, मूड स्विंग और शुगर लेवल का बार-बार बढ़ना-घटना आम बात हो जाती है।
थायरॉइड और डायबिटीज का क्या है गहरा कनेक्शन?
गर्दन के निचले हिस्से में स्थित तितली के आकार की थायरॉयड ग्रंथि हमारे शरीर के मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करती है। वहीं, इंसुलिन हार्मोन शरीर के ब्लड शुगर लेवल को मैनेज करता है। ये दोनों हार्मोन – थायरॉइड और इंसुलिन – मिलकर शरीर में एनर्जी बैलेंस बनाए रखते हैं। लेकिन जैसे ही थायरॉइड हार्मोन का स्तर बिगड़ता है, वैसे ही इंसुलिन पर भी असर पड़ता है। इसका सीधा असर डायबिटीज पर दिखता है।
हाइपोथायरायडिज्म और डायबिटीज:
हाइपोथायरायडिज्म यानी थायरॉइड ग्रंथि का कम सक्रिय होना, इंसुलिन की प्रोसेसिंग को धीमा कर देता है। इसका मतलब है कि इंसुलिन लंबे समय तक रक्तप्रवाह में बना रहता है, जिससे शुगर अचानक गिर सकती है। शरीर का मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है और इंसुलिन रेसिस्टेंस बढ़ जाता है – यानि शरीर इंसुलिन पर कम प्रतिक्रिया देता है। इस स्थिति में ब्लड शुगर कंट्रोल करना बेहद मुश्किल हो जाता है और मरीज को कई बार हाई और लो शुगर की स्थिति झेलनी पड़ती है।
हाइपरथायरायडिज्म और डायबिटीज:
इसके उलट, हाइपरथायरायडिज्म यानी थायरॉइड ग्रंथि का जरूरत से ज़्यादा सक्रिय होना मेटाबॉलिज्म को तेजी से बढ़ा देता है। ऐसे में शरीर ग्लूकोज को जल्दी-जल्दी अवशोषित करता है, लेकिन सेल्स इंसुलिन पर कम रिस्पॉन्स करते हैं, जिससे हाइपरग्लाइसेमिया यानी ब्लड शुगर का हाई लेवल होने लगता है। इस स्थिति में डायबिटीज को कंट्रोल में रखना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
लोग लक्षणों को नजरअंदाज क्यों कर देते हैं?
डायबिटिक मरीज़ आमतौर पर अपने शुगर लेवल की नियमित जांच करते हैं और उतार-चढ़ाव पर नज़र रखते हैं। लेकिन थायरॉइड के लक्षण – जैसे थकावट, नींद की कमी, वजन बढ़ना या घटना, मूड स्विंग, बाल झड़ना या डिप्रेशन – को लोग अक्सर सामान्य तनाव या लाइफस्टाइल इश्यू मानकर अनदेखा कर देते हैं। यही अनदेखी डायबिटीज को अस्थिर करने का कारण बन जाती है।
थायरॉइड को कंट्रोल किए बिना डायबिटीज को कंट्रोल करना नामुमकिन है।
डॉ. रोहिता शेट्टी, एबॉट इंडिया की मेडिकल अफेयर्स हेड के अनुसार, “डायबिटीज से जूझ रहे लोगों के लिए थायरॉइड की जांच उतनी ही जरूरी है जितनी शुगर की। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इसलिए शुगर कंट्रोल करना है, तो थायरॉइड कंट्रोल करना ही होगा।”
तो क्या है समाधान? कैसे करें दोनों बीमारियों पर काबू?
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सबसे पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेकर थायरॉइड फंक्शन टेस्ट और ब्लड शुगर टेस्ट नियमित रूप से कराएं।
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रोजाना कम से कम 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि या वॉक करें।
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प्रोसेस्ड और मीठा खाना खाने से बचें, घर का बना बैलेंस्ड और पौष्टिक भोजन लें।
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पर्याप्त नींद लें और तनाव से बचें – क्योंकि तनाव दोनों हार्मोनल कंडीशंस को बिगाड़ सकता है।
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दवाइयों का सेवन डॉक्टर की सलाह के अनुसार और समय पर करें।
थायरॉइड और डायबिटीज की कॉम्बिनेशन वाली स्थिति को हल्के में लेना घातक हो सकता है। इन दोनों बीमारियों के बीच छुपे इस खामोश संबंध को जानना और समझना बेहद जरूरी है, ताकि आप अपनी सेहत को बर्बादी की ओर जाने से पहले संभाल सकें।
Disclaimer: इस रिपोर्ट में दी गई जानकारी हेल्थ एजेंसियों और डॉक्टरों की सलाह पर आधारित है। किसी भी दवा या उपचार से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य करें।