जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले से 15 करोड़ रुपए नगद बरामद होने के बाद देशभर में सनसनी फैल गई। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके ट्रांसफर की सिफारिश कर दी है, लेकिन मामला यहीं नहीं थम रहा। अब महाभियोग चलाने की मांग भी उठने लगी है।
कैसे खुला यह चौंकाने वाला मामला?
होली की रात, जब जस्टिस वर्मा अपने सरकारी बंगले में मौजूद नहीं थे, उनके बंगले में अचानक आग लग गई। परिवार ने फायर ब्रिगेड को बुलाया। जब दमकलकर्मी आग बुझाने पहुंचे, तो वहां जो दिखा, उसने हर किसी के होश उड़ा दिए। दमकल टीम को आग बुझाते वक्त अलमारी और बैगों में भरे 15 करोड़ रुपए नकद मिले। टीम ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। जैसे ही यह खबर CJI संजीव खन्ना तक पहुंची, तो मामले की गंभीरता को देखते हुए CJI संजीव खन्ना ने 5 सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई। बैठक में जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का फैसला किया गया। हालांकि, इस सिफारिश को अभी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया।
हालाँकि इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर पर कड़ी नाराजगी जताई। एसोसिएशन का कहना है, “क्या हम कूड़ादान हैं, जहां इस तरह के विवादित जजों को भेजा जाए?” वहीं, सूत्रों के मुताबिक, कॉलेजियम के कुछ सदस्यों ने सुझाव दिया कि जस्टिस वर्मा से इस्तीफा मांगा जाना चाहिए।
बार एसोसिएशन ने स्पष्ट किया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट भ्रष्टाचार के आरोपियों के लिए कोई कूड़ादान नहीं है, जहां उन्हें न्याय दिलाने के लिए भेजा जाए। उन्होंने जस्टिस यशवंत वर्मा के इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर पर रोक लगाने की मांग की है। जब तक उनके खिलाफ चल रही जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक उन्हें न्यायिक कार्य से अलग रखा जाना चाहिए। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए बार एसोसिएशन ने 24 मार्च को जनरल हाउस की बैठक भी बुलाई है, जिसमें महत्वपूर्ण निर्णय लिया जा सकता है। इसके साथ ही, एसोसिएशन ने इस विषय पर चार पन्नों का एक पत्र भी जारी किया है।
पत्र में कहा गया है कि उन्हें मीडिया की खबरों से पता चला है कि जस्टिस वर्मा के घर से कुछ पैसे मिलने के आरोप के चलते उनका इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की गई है। जस्टिस के आवास से रुपये मिलना पूरी तरह से गलत है। यदि आरोपियों को हाईकोर्ट में न्याय देने के लिए रखा गया, तो इससे जनता का न्याय प्रणाली पर विश्वास कम होगा। यह मामला न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए गंभीर संकट उत्पन्न करता है। एसोसिएशन ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का भी उल्लेख किया है।
इधर, कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इस मुद्दे को संसद में उठाते हुए कहा, “आज सुबह हमने एक चौंकाने वाली खबर पढ़ी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई है। न्यायपालिका में जवाबदेही की जरूरत है।” जिसके बाद राज्यसभा के चेयरमैन और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जवाब दिया कि “हम इस पर एक स्ट्रक्चर्ड डिस्कशन करवाएंगे।”
दरअसल, कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इस मुद्दे को सदन में उठाते हुए ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी पर चर्चा की मांग की थी। जिसपर राज्यसभा के चेयरमैन और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है और वह इस मुद्दे पर एक स्ट्रक्चर्ड डिस्कशन करवाएंगे। जयराम रमेश ने कहा था की – आज सुबह हमने एक चौंकाने वाली खबर पढ़ी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने की बात सामने आई है। रमेश ने यह भी याद दिलाया कि पहले 50 सांसदों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया था, लेकिन उस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने चेयरमैन से अनुरोध किया कि न्यायिक जवाबदेही बढ़ाने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश दिए जाएं।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने भी मोर्चा खोलते हुए कहा,“अब वक्त आ गया है कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए।” कपिल सिब्बल ने कहा, “मुझे मामले की बारीकियों की जानकारी नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से न्यायपालिका के अंदर भ्रष्टाचार का मुद्दा बहुत गंभीर मुद्दा है। लेकिन मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करना शुरू करे कि नियुक्ति प्रक्रिया कैसे होनी चाहिए। इसे और अधिक पारदर्शी होना चाहिए और ज्यादा सावधानी से किया जाना चाहिए।”
जस्टिस यशवंत वर्मा कौन हैं ?
जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को हुआ। उन्होंने हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की और 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की। 8 अगस्त 1992 को उन्होंने वकील के रूप में पंजीकरण कराया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत की शुरुआत की। उनकी विशेषज्ञता मुख्य रूप से सिविल मामलों में थी, और उन्होंने संवैधानिक, औद्योगिक विवाद, कॉर्पोरेट, टैक्सेशन और पर्यावरण से संबंधित मामलों में पैरवी की। 2006 से वह हाई कोर्ट के विशेष वकील रहे और 2012 में उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता बने। अगस्त 2013 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा प्रदान किया गया।
न्यायिक सेवाओं में उनकी यात्रा 13 अक्टूबर 2014 को शुरू हुई, जब उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया। 1 फरवरी 2016 को उन्होंने स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की। इसके बाद, 11 अक्टूबर 2021 को उनका स्थानांतरण दिल्ली हाई कोर्ट में किया गया। अब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 मार्च 2025 को उनके पुनः इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरण की सिफारिश की है।