क्या सरला मिश्रा की मौत आत्महत्या नहीं, बल्कि साज़िशन हत्या थी? 28 साल बाद फिर खुलेगा बंद किया गया केस, कोर्ट ने पुलिस की रिपोर्ट को किया खारिज!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

भोपाल की राजनीति में हलचल मचा देने वाला एक 28 साल पुराना मामला फिर सुर्खियों में है। कांग्रेस नेता सरला मिश्रा की मौत को लेकर भोपाल जिला अदालत ने पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज कर दिया है और मामले की फिर से जांच के आदेश दिए हैं। यह वही केस है जिसे एक वक्त पर आत्महत्या बताकर बंद कर दिया गया था, लेकिन अब इसे पूर्व नियोजित हत्या मानने की आशंकाएं गहराने लगी हैं।

 संदिग्ध हालात में जली सरला मिश्रा, कोर्ट ने खारिज की पुलिस की थ्योरी

14 फरवरी 1997 की रात, भोपाल के साउथ टीटी नगर स्थित सरकारी आवास में सरला मिश्रा 90% से अधिक जल चुकी हालत में पाई गईं। ढाई घंटे बाद रात 1.30 बजे उन्हें हमीदिया अस्पताल ले जाया गया। पुलिस ने शुरुआती जांच में इसे आत्महत्या करार दिया और सबूतों के आधार पर केस बंद करने की सिफारिश की।

लेकिन अब अदालत ने पुलिस की इस रिपोर्ट को ‘अधूरी और लापरवाह’ बताते हुए दोबारा जांच के आदेश दिए हैं। सवाल उठ रहे हैं कि जिस केस को तीन साल में रफा-दफा कर दिया गया, वह क्या राजनीतिक दबाव का शिकार था?

अब जब अदालत ने खात्मा रिपोर्ट को “अधूरी और त्रुटिपूर्ण” मानते हुए दोबारा जांच के आदेश दिए हैं, तो कई ज्वलंत सवाल एक बार फिर सामने आ गए हैं। सरला मिश्रा के मृत्युपूर्व बयान पर दस्तखत किसके थे, जबकि वह 90% तक जल चुकी थीं? उनके कमरे में मिले फटे हुए कागज़, शराब की बोतल और माचिस की तीलियों की फॉरेंसिक जांच क्यों नहीं कराई गई? आखिर क्यों नहीं देखे गए शराब की बोतल पर लगे फिंगरप्रिंट?

इतना ही नहीं, पुलिस ने उस लैंडलाइन फोन की भी जांच नहीं की, जिससे कथित रूप से सरला मिश्रा ने जलते हुए कॉल किया था। क्या जलती हुई हालत में कोई महिला डायल करने वाले फोन से कॉल कर सकती है? इसी के साथ माना जा रहा है की फॉरेंसिक, हैंडराइटिंग और कानून के विशेषज्ञों  इन पहलुओं की जांच आज भी कर सकते है।

वहीं, सरला मिश्रा के भाई अनुराग मिश्रा शुरू से इसे साजिशन हत्या बता रहे हैं। उनका आरोप है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार इस मामले को दबाने में शामिल थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनकी बहन का सोनिया गांधी के 10 जनपथ से सीधा संपर्क था और वे पार्टी में काफी सक्रिय थीं। तत्कालीन गृहमंत्री चरणदास महंत ने 1997 में विधानसभा में CBI जांच का ऐलान किया था, लेकिन यह कभी लागू नहीं हुई। और साल 2000 में पुलिस ने बिना ठोस फोरेंसिक जांच के केस बंद कर दिया।

बता दें, सरला मिश्रा के पिता और भाई ने उस वक्त खुलकर कहा था कि “मेरी बेटी की हत्या हुई है, यह आत्महत्या नहीं।” लेकिन राजनैतिक दबावों और सत्ता संरक्षण में यह मामला दफन होता चला गया। अब जब कोर्ट ने पुराने जख्मों को फिर से कुरेद दिया है, तो यह जांच एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ खड़ी हुई है।

हालाँकि पुरे मामले में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का कहना है- ये पहली बार नहीं है। इसे कम से कम 20 साल हो गए है। जितनी जांच करानी है, करा लें। स्वागत है। पहले भी बीजेपी की सरकार जांच करा चुकी है।

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