जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भारत में वक्फ संपत्तियों को लेकर चल रही कानूनी और राजनीतिक लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट के दरबार में पहुंच चुकी है, और इस बार मामला केवल कानून का नहीं, बल्कि आस्था, अधिकार और संवैधानिक मूल्यों के टकराव का है। बुधवार को वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ दायर 70 से ज़्यादा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। मामले की गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना इस पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं।
सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मैदान में हैं, जबकि विपक्ष की ओर से देश के दिग्गज वकील – कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, सीयू सिंह जैसे नाम बहस कर रहे हैं। यह मुकदमा अब केवल वक्फ कानून तक सीमित नहीं रहा, यह बहस बन चुकी है – क्या किसी धर्म विशेष की आस्था के मूल स्तंभों पर राज्य का हस्तक्षेप वैध है?
CJI ने सुनवाई की शुरुआत में ही दो टूक सवाल खड़े किए – क्या इतनी बड़ी संख्या में दाखिल याचिकाओं पर सीधे सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई करनी चाहिए, या इसे राज्य स्तर के हाईकोर्ट्स के पास भेजा जाए? और दूसरा, याचिकाकर्ता किस खास बिंदु पर इस कानून को चुनौती दे रहे हैं?
इस पर कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन है, जो प्रत्येक धार्मिक समूह को अपने संस्थानों की स्थापना, संचालन, संपत्ति रखने और धार्मिक परंपराओं को संचालित करने का अधिकार देता है। उनका तर्क साफ था – यह कानून किसी समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता के केंद्रबिंदु पर वार है। कपिल सिब्बल ने अदालत में साफ शब्दों में कहा, “यह सिर्फ एक संसदीय कानून नहीं, बल्कि किसी धर्म की आत्मा पर दखल है।” उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्तियाँ सदियों पुरानी परंपराओं और आस्था का हिस्सा हैं, जिनका प्रशासनिक नियंत्रण कानून द्वारा नहीं, समुदाय के भीतर से होना चाहिए।
इधर, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के इस कदम के खिलाफ ‘वक्फ बचाओ अभियान’ छेड़ दिया है। 11 अप्रैल से शुरू होकर 7 जुलाई तक चलने वाले इस 87 दिवसीय आंदोलन में देशभर से 1 करोड़ विरोध हस्ताक्षर एकत्र किए जाएंगे, जो सीधे प्रधानमंत्री को सौंपे जाएंगे। इसके बाद आंदोलन का दूसरा चरण और भी आक्रामक रूप ले सकता है। इन याचिकाओं में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, आप विधायक अमानतुल्ला खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई नाम शामिल हैं। सभी का आरोप है कि सरकार वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की मंशा से यह संशोधन लेकर आई है, ताकि धार्मिक और सामाजिक संस्थानों को कमजोर किया जा सके।
क्या है वक्फ – और क्यों है ये कानून से परे?
‘वक्फ’ शब्द की जड़ें अरबी भाषा में हैं। यह ‘वकुफा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है – रोक देना, ठहरा देना, या ईश्वर के नाम पर निषिद्ध कर देना। परंतु यह केवल एक शब्द नहीं है, यह उस धार्मिक समर्पण और सेवा भावना का प्रतीक है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी मेहनत की संपत्ति को खुद के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर और समाज के नाम पर हमेशा के लिए समर्पित कर देता है।
इस्लामिक परंपरा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी धार्मिक कारण से या खालिस ईश्वरीय भावना के तहत अपनी कोई चल-अचल संपत्ति – चाहे वह नगद हो, ज़मीन हो, मकान हो या कीमती आभूषण – किसी पवित्र उद्देश्य के लिए दान करता है, तो वह वक्फ संपत्ति कहलाती है।
यह संपत्ति अब किसी व्यक्ति की नहीं, बल्कि ‘अल्लाह की संपत्ति’ मानी जाती है। और इस प्रक्रिया को वक्फ करने वाला व्यक्ति ‘वकिफा’ कहलाता है। यह वकिफा स्वयं यह शर्त तय कर सकता है कि उस संपत्ति की आमदनी किस उद्देश्य के लिए खर्च की जाए – जैसे कि गरीबों की पढ़ाई, स्वास्थ्य सेवाएं, अनाथालय, मदरसे या धार्मिक संस्थान। वक्फ संपत्तियाँ कोई सामान्य दान नहीं हैं। यह संपत्तियाँ एक बार वक्फ हो जाने के बाद स्थायी रूप से धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए ही आरक्षित हो जाती हैं। इन्हें न बेचा जा सकता है, न किराए पर उठाया जा सकता है और न ही किसी धर्मविरोधी कार्य या व्यापारिक मकसद में इस्तेमाल किया जा सकता है।
यह नियम केवल धार्मिक नहीं, बल्कि कानूनी रूप से भी प्रतिबंधित है। क्योंकि जब कोई संपत्ति वक्फ हो जाती है, तो वह एक तरह से ईश्वर के नाम पर पवित्र संपत्ति घोषित हो जाती है – और उसका नियंत्रण व संचालन केवल उसके घोषित उद्देश्य तक ही सीमित रहता है।
बता दें, वक्फ का इतिहास इस्लाम के शुरुआती दिनों तक जाता है। इसका सबसे पहला ऐतिहासिक उदाहरण पैगंबर मोहम्मद के समय का है, जब उन्होंने मदीना में खजूरों के 600 पेड़ों का एक बाग वक्फ कर दिया था। इस बाग की आमदनी से गरीब, बेसहारा और ज़रूरतमंद लोगों की मदद की जाती थी। इस एक ऐतिहासिक कदम ने इस्लामी समाज को यह रास्ता दिखाया कि अपनी निजी संपत्तियों को कैसे समाज के व्यापक कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। आज भारत में लाखों एकड़ ज़मीन, हजारों इमारतें, मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान, यतीमखाने और अस्पताल वक्फ संपत्तियों की श्रेणी में आते हैं। यह संपत्तियाँ न केवल धार्मिक विश्वास का हिस्सा हैं, बल्कि देश की सामाजिक संरचना को सहारा देने वाले स्तंभ भी हैं।