जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
महाराजा यशवंतराव अस्पताल (एमवायएच) के एनआईसीयू में हाल ही में दो नवजात शिशुओं की मौत ने पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शुरुआती चर्चाओं में यह दावा किया गया कि मौतों का कारण चूहों का कुतरना है। हालांकि, प्रशासन और अस्पताल प्रबंधन इस बात से इनकार कर रहे हैं। हकीकत क्या है—इसको लेकर अब विरोधाभासी बयान और गड़बड़ी सामने आ रही है।
दो दिनों में दो मौतें
मंगलवार को खंडवा जिले के पास एक गांव की रहने वाली मंजू के बच्चे की मौत हुई, जबकि बुधवार को देवास की रेहाना के नवजात ने दम तोड़ा। दोनों ही मामलों में परिजनों ने चूहों के कुतरने का आरोप लगाया। रेहाना के बच्चे के शव का पोस्टमॉर्टम परिजन की सहमति न मिलने के कारण नहीं हुआ, जबकि मंजू के नवजात की रिपोर्ट को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
पोस्टमॉर्टम को लेकर उलझन
मंजू के नवजात को लेकर पुलिस विभाग के ही अलग-अलग दावों ने संदेह गहरा दिया है।
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एमवायएच पुलिस चौकी के कर्मचारी नूर सिंह मोरे का कहना है कि शव का पोस्टमॉर्टम पहले ही हो चुका और कागजात ‘अज्ञात’ के नाम पर तैयार किए गए हैं।
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वहीं, संयोगितागंज थाना प्रभारी अरविंद खत्री का दावा है कि पोस्टमॉर्टम अभी हुआ ही नहीं है। यदि परिजन सामने नहीं आए तो शव का परीक्षण कर अंतिम संस्कार कराया जाएगा।
यानी अस्पताल प्रशासन और पुलिस दोनों के बयानों में विरोधाभास है। दैनिक भास्कर ने जब सीएमएचओ कार्यालय से जानकारी जुटाई तो वहां के वार्ड बॉय ने भी पहले कहा कि पोस्टमॉर्टम हो चुका है, लेकिन बाद में खुद को सुधारते हुए माना कि केवल शव पीएम रूम भेजा गया है।
घटना के बाद कई स्तर पर जिम्मेदारों पर कार्रवाई की गई है।
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डॉ. बृजेश लोहटी को नोटिस,
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ड्यूटी पर तैनात दो नर्सिंग ऑफिसर निलंबित,
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कई अधिकारियों व कर्मचारियों को शो-कॉज नोटिस,
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नर्सिंग सुपरिटेंडेंट को हटाकर नया प्रभार सौंपा गया,
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अस्पताल में पेस्ट कंट्रोल करने वाली एजेंसी पर 1 लाख रुपये का जुर्माना और टर्मिनेशन का नोटिस।
साथ ही उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की गई है, जिसमें वरिष्ठ डॉक्टर और नर्सिंग अधिकारी शामिल हैं।
सरकार और विपक्ष आमने-सामने
मामला तूल पकड़ने के बाद उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इसे गंभीर मानते हुए तत्काल कार्रवाई की बात कही। उन्होंने माना कि नियमित पेस्ट कंट्रोल न होने से चूहों की संख्या बढ़ी और एजेंसी पर जुर्माना लगाया गया।
वहीं, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने सरकार पर सीधा हमला करते हुए कहा कि “चूहों से ज्यादा खतरनाक प्रशासनिक भ्रष्टाचार है, जिसने नवजातों की जान ली है।”
चूहों का गढ़ क्यों बना अस्पताल?
एमवायएच परिसर न केवल मध्य भारत का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, बल्कि इसके आसपास कैंसर, टीबी, चेस्ट और बच्चों का अस्पताल भी है। इन इमारतों में खाने-पीने का सामान लाने पर कोई सख्त रोक नहीं है। यही वजह है कि मरीजों के साथ आए लोग खाद्य सामग्री वार्ड तक ले जाते हैं, जिससे चूहों को पर्याप्त भोजन मिलता है।
गवर्नमेंट वेटरनरी कॉलेज महू के प्रोफेसर डॉ. संदीप नानावटी बताते हैं कि दवाओं और ग्लूकोज से भी चूहों को एनर्जी मिलती है, जो उनकी प्रजनन क्षमता बढ़ाती है। जब भोजन नहीं मिलता तो वे सामान और यहां तक कि नवजात शिशुओं को भी नुकसान पहुंचा देते हैं।
चूहों पर काबू की पुरानी कवायद
यह पहली बार नहीं है जब एमवाय अस्पताल में चूहों का आतंक चर्चा में आया हो।
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1994 में तत्कालीन कलेक्टर ने बड़े स्तर पर पेस्ट कंट्रोल अभियान चलाया था, जिसमें 12 हजार चूहे मारे गए थे।
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2014 में कमिश्नर स्तर पर फिर से अभियान चला और ढाई हजार चूहे खत्म किए गए।
इसके बावजूद हालात अब फिर पुराने ढर्रे पर लौट आए हैं।
फिलहाल की स्थिति
अस्पताल प्रबंधन ने दावा किया है कि अब एनआईसीयू में चूहों के प्रवेश के सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं। हर पखवाड़े पेस्ट कंट्रोल की कार्रवाई होगी। फिलहाल एनआईसीयू में सिर्फ दो नवजात हैं, जिन पर स्टाफ लगातार नजर रख रहा है।