जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
देश के पूर्व राज्यपाल और राजनीतिक हलकों में बेबाक बयानों के लिए चर्चित सत्यपाल मलिक का मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। दोपहर 1:12 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले कई महीनों से किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। 11 मई को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने पर ICU में भर्ती कराया गया था। 9 जुलाई को उनके आधिकारिक X (ट्विटर) अकाउंट से हेल्थ अपडेट जारी कर लोगों से अफवाहें न फैलाने की अपील की गई थी।
सत्यपाल मलिक की पहचान सिर्फ एक गवर्नर के तौर पर नहीं, बल्कि एक ऐसे नेता के रूप में भी रही जो सत्ता से सवाल पूछने की हिम्मत रखता था — भले ही वह सवाल उसी सरकार से क्यों न हो जिसने उन्हें ऊँचे पदों पर बैठाया था।
370 हटाने वाले राज्यपाल का चुपचाप विदा हो जाना
23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे मलिक का कार्यकाल देश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का निर्णय उन्हीं के प्रशासनिक नेतृत्व में हुआ था। उन्होंने इस फैसले के दौरान प्रशासनिक और संवैधानिक संतुलन को संभालने का दावा किया था। लेकिन इसी पद पर रहते हुए उन्हें बाद में भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी जांचों का सामना करना पड़ा।
CBI जांच और 2200 करोड़ का घोटाला: पूर्व राज्यपाल पर शिकंजा
22 मई 2025 को, CBI ने सत्यपाल मलिक समेत 5 लोगों के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के कीरू हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट से जुड़े एक कथित 2,200 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार मामले में चार्जशीट दाखिल की। इस घोटाले की जड़ें 2017-2019 के बीच के दौर में फैली थीं, जब मलिक राज्यपाल के पद पर थे। CBI ने इससे पहले 22 फरवरी 2024 को उनके दिल्ली स्थित आवास समेत 30 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी भी की थी।
आश्चर्य की बात यह रही कि जिन घोटालों की जांच खुद CBI कर रही थी — उनका पहला खुलासा खुद सत्यपाल मलिक ने 2021 में एक सार्वजनिक मंच से किया था। उन्होंने राजस्थान के झुंझुनूं में कहा था कि उन्हें जम्मू-कश्मीर में दो बड़ी फाइलों के बदले 300 करोड़ रुपए की रिश्वत का ऑफर मिला था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
“मैं पांच कुर्ता-पायजामों के साथ आया था, और उन्हीं के साथ चला जाऊंगा”
यह बयान उनकी राजनीतिक ईमानदारी और टकराव की प्रवृत्ति को दर्शाता है। उन्होंने कहा था कि एक उद्योगपति और एक पूर्व मंत्री की फाइलों पर हस्ताक्षर के लिए उन्हें रिश्वत की पेशकश की गई थी। मलिक का दावा था कि उन्होंने जब ये घोटाले रोके, तभी से उन्हें केंद्र सरकार से टकराव का सामना करना पड़ा।
CBI ने इन आरोपों को गंभीरता से लेते हुए दो एफआईआर दर्ज कीं — एक हेल्थ इंश्योरेंस घोटाले और दूसरी कीरू प्रोजेक्ट से संबंधित। लेकिन मामला यही नहीं थमा। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी गर्म रही कि मलिक को इसलिए निशाने पर लिया गया क्योंकि उन्होंने किसानों के आंदोलन, पुलवामा हमले और सरकार की विदेश नीति पर भी खुलकर आलोचना की थी।
विवादों और राजनीतिक विद्रोह का दूसरा नाम थे मलिक
वे भाजपा से राज्यपाल बने, लेकिन मोदी सरकार के कई फैसलों पर वे लगातार सवाल उठाते रहे। उन्होंने पुलवामा हमले को लेकर दावा किया था कि “यह सरकार की सुरक्षा विफलता थी।” साथ ही, उन्होंने किसानों के आंदोलन को भी खुलकर समर्थन दिया। उन्होंने एक बार कहा था कि “सरकार अंधी और बहरी है, किसानों की बात सुनने को तैयार नहीं।”