जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया, जिसे आम भाषा में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन कहा जा रहा है, को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लगातार तीसरे दिन भी सुनवाई हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि यदि 22 लाख लोगों को मृत पाया गया है, तो उनके नाम ब्लॉक और सब-डिवीजन स्तर पर सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने आयोग का पक्ष रखते हुए कहा कि इस प्रक्रिया में सिर्फ बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) ही नहीं, बल्कि बूथ लेवल एजेंट (BLA) भी शामिल हैं। जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि मृत, प्रवासी और डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध कराए जा सकते हैं। इस पर द्विवेदी ने कहा कि राज्य सरकार की वेबसाइट पर यह संभव नहीं है। जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि राज्य चुनाव आयोग (CEO) की वेबसाइट इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जा सकती है, जिस पर द्विवेदी ने सहमति जताई।
कोर्ट के अहम निर्देश और टिप्पणियां
पीठ ने स्पष्ट कहा कि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मतदाता से जुड़ी सभी जानकारी पारदर्शी तरीके से उपलब्ध होनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति वेबसाइट पर जाए तो उसे आसान भाषा में अपनी जानकारी प्राप्त हो सके। जिस तरह ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की गई है, उसी तरह काटे गए नामों की सूची भी सार्वजनिक होनी चाहिए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
युवाओं को सूची से बाहर करने का आरोप
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील निजाम पाशा ने 1 जनवरी 2003 को आधार तिथि मानकर संशोधन प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया इंटेंसिव हो या समरी—दोनों में एक जैसी होनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि 2003 को आधार बनाने से नए और युवा मतदाताओं को अतिरिक्त दस्तावेज की जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है, जिससे वे सूची से बाहर हो रहे हैं। पाशा के अनुसार, अब तक करीब 65 लाख मतदाता बाहर रह गए हैं और फॉर्म की जांच के बाद यह स्पष्ट होगा कि इनमें बड़ी संख्या युवाओं की है।
सुनवाई में वकील पाशा ने यह भी बताया कि BLO मतदाता फार्म लेने के बाद रसीद नहीं दे रहे हैं और कई मामलों में अपने विवेक से नाम हटा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, सिर्फ एक बूथ से 231 नाम हटा दिए गए, जबकि वे 2003 की सूची में शामिल थे। उन्होंने कोर्ट को प्रभावित लोगों के हलफनामे भी उपलब्ध कराए।
वकील शोएब आलम ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया का मूल सिद्धांत ‘इंक्लूजन’ होना चाहिए—अधिकतम लोगों को शामिल किया जाए, न कि अपात्र घोषित करने के लिए कठोर मानदंड अपनाए जाएं। उन्होंने डोमिसाइल सर्टिफिकेट की अनिवार्यता पर भी सवाल उठाया और बताया कि समय सीमा समाप्त होने के कारण दस्तावेज़ न होने वाले लोग असहाय हो गए हैं।
पिछली सुनवाई की मुख्य बातें
13 अगस्त को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने SIR प्रक्रिया को वोटर-फ्रेंडली बताया था और कहा था कि आयोग ने 11 में से कोई एक दस्तावेज़ मांगने का विकल्प दिया है। हालांकि, वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने स्थायी निवास प्रमाणपत्र की अनिवार्यता पर आपत्ति जताई थी, क्योंकि बिहार में केवल 1-2% लोगों के पास ही यह प्रमाणपत्र है।
12 अगस्त को RJD सांसद मनोज झा की ओर से कपिल सिब्बल ने उदाहरण देते हुए कहा था कि बिहार की वोटर लिस्ट में 12 जीवित लोगों को मृत घोषित कर दिया गया है। इसी दौरान, स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव दो ऐसे लोगों को कोर्ट में पेश कर लाए थे, जिन्हें ड्राफ्ट सूची में मृत घोषित कर दिया गया था, जबकि वे जीवित थे और उनके पास सभी वैध दस्तावेज थे।
65 लाख नाम हटाने पर बढ़ा विवाद
NGO और कई नेताओं ने आरोप लगाया है कि SIR प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर अनियमितताएं हुई हैं और वैध मतदाताओं के नाम भी हटा दिए गए हैं। 65 लाख हटाए गए नामों में मृत, स्थानांतरित और डुप्लीकेट मतदाता शामिल बताए जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक दलों ने अभी तक आयोग के पास औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं कराई है।
निर्वाचन आयोग के अनुसार, RJD के 47,506 BLO, कांग्रेस के 17,549 BLO, माले के 1,496 BLO और CPI के 899 BLO हैं, लेकिन अब तक किसी ने भी एक भी औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं की है।
क्या है SIR प्रक्रिया
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन का उद्देश्य मतदाता सूची से मृत, प्रवासी और डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम हटाना और सूची को अद्यतन करना है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस प्रक्रिया का इस्तेमाल युवा और विपक्षी मतदाताओं को सूची से बाहर करने के लिए किया जा रहा है।