इंदौर से उज्जैन भेजे गए ‘भिक्षुक’ निकले पूर्व इंजीनियर और मीसाबंदी, 10 लाख बैंक बैलेंस और 30 हज़ार पेंशन पाने वाले बुजुर्ग की कहानी ने उड़ा दिए होश!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

इंदौर को भिक्षुक मुक्त करने की प्रशासनिक मुहिम के तहत उज्जैन के सेवाधाम आश्रम भेजे गए एक बुजुर्ग की सच्चाई ने पूरे सिस्टम की कार्यशैली और समाज के प्रति हमारी सोच पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। 15 अप्रैल को भिक्षुक मानकर आश्रम भेजे गए बुजुर्ग कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, बल्कि मैकेनिकल इंजीनियर, सामाजिक कार्यकर्ता और मीसाबंदी रह चुके देवव्रत चौधरी हैं। 72 वर्षीय देवव्रत फर्राटेदार अंग्रेजी में स्वतंत्रता संग्राम, विनोबा भावे के साथ बिताए दिन, और सामाजिक योगदान की कहानियाँ सुनाते हैं। उन्होंने मुंबई की प्रतिष्ठित कंपनियों में इंजीनियर की नौकरी की, SGITS कॉलेज के स्टूडेंट प्रेसिडेंट रहे और 35 वर्षों तक गांधीवादी आंदोलनों से जुड़े रहे।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि उनके बैंक खाते में 10 लाख रुपए से अधिक की रकम है, और वे सरकार से मीसाबंदी के तहत हर माह ₹30,000 पेंशन भी पा रहे हैं। इसके बावजूद वे इंदौर के राजबाड़ा स्थित मंदिर के बाहर भीख मांगते मिले। प्रशासनिक टीम ने बिना पहचान सत्यापन के उन्हें भिक्षुक मानते हुए उठाया और उज्जैन स्थित सेवाधाम आश्रम में दाखिल करा दिया।

देवव्रत चौधरी का जीवन संघर्ष और सामाजिक समर्पण की मिसाल है। 1975 में जब देश में आपातकाल लगा, तब वे मीसा (Maintenance of Internal Security Act) के तहत जेल भी गए। उन्होंने विनोबा भावे के साथ रहकर देश के 11 गाँवों में गैस प्लांट स्थापित किए35 वर्षों तक उन्होंने विनोबा भावे के आश्रम में रहकर समाज सेवा की।

शादी नहीं की। आज़ादी से जीने की ललक और समाजसेवा के जुनून के साथ उन्होंने अकेले ही अपना जीवन व्यतीत किया। इंदौर के कुलकर्णी भट्टे इलाके में वे 3500 रुपए किराए पर मकान लेकर रहते थे। लेकिन समय के थपेड़े और रिश्तों की दूरी ने उन्हें राजबाड़ा मंदिर की सीढ़ियों तक पहुंचा दिया।

देवव्रत के परिवार की स्थिति भी सामान्य नहीं है—एक भाई कर्नल रहे हैं, दूसरा बैंक अधिकारी। एक भतीजा अमेरिका में कार्यरत है। बावजूद इसके, वह बुजुर्ग जो समाज का मार्गदर्शक हो सकता था, इंदौर की सड़कों पर भीख मांगते देखा गया।

सेवाधाम आश्रम के आंकड़ों के अनुसार, अब तक इंदौर से 425 लोगों को वहां शिफ्ट किया गया है, जिनमें से कई मानसिक रूप से अस्वस्थ या असहाय हैं। लेकिन देवव्रत चौधरी की कहानी उन तमाम चेहरों में सबसे अलग और सबसे झकझोर देने वाली है।

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