रेप केस में दोषी को 4 साल 7 महीने ज्यादा जेल में रखा, सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को लताड़ा; अब सरकार को चुकाने होंगे 25 लाख!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि किसी भी दोषी को उसकी सजा पूरी होने के बाद जेल में रखना गंभीर प्रशासनिक लापरवाही है। अदालत ने रेप के एक मामले में दोषी को निर्धारित सजा से 4 साल 7 महीने ज्यादा जेल में रखने पर राज्य सरकार को पीड़ित को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है।

मामला कहाँ से शुरू हुआ?

यह पूरा मामला सागर जिले के सोहन सिंह उर्फ बबलू से जुड़ा है। साल 2004 में ट्रायल कोर्ट ने उसे रेप के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में उसने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अक्टूबर 2007 में हाईकोर्ट ने सजा को घटाकर 7 साल कर दिया।

सजा पूरी होने के बाद भी जेल में रहा बंद

सजा घटने के बाद 2021 में उसकी 7 साल की अवधि पूरी हो गई थी, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण उसकी रिहाई नहीं हुई। नतीजा यह हुआ कि दोषी को लगभग 4 साल 7 महीने तक अतिरिक्त जेल में रहना पड़ा।

2025 में जेल से मिली रिहाई

इस मामले को लीगल एड सिस्टम के जरिए वरिष्ठ अधिवक्ता महफूज ए. नाजकी तक पहुँचाया गया। उन्होंने पुलिस और लीगल एड अधिकारियों से बातचीत की और आखिरकार 6 जून 2025 को सोहन सिंह को जेल से रिहा कराया गया। इसके बाद जब मुआवजे की मांग उठी तो सुप्रीम कोर्ट ने पूरा रिकॉर्ड खंगालने के बाद पाया कि कैदी को उसकी वास्तविक सजा से कई साल ज्यादा जेल में रखा गया।

सुप्रीम कोर्ट ने लापरवाही को बताया “गंभीर चूक”

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने राज्य सरकार से सख्त सवाल किए। कोर्ट ने कहा कि ऐसी लापरवाही किसी भी सभ्य व्यवस्था में अस्वीकार्य है। यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक तंत्र की विफलता है। अदालत ने जेल प्रशासन से लेकर उच्च अधिकारियों तक की जिम्मेदारी तय करने की बात कही।

सरकार की सफाई, पर कोर्ट का सख्त रुख

मध्यप्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नचिकेता जोशी ने दलील दी कि दोषी कुछ समय जमानत पर भी बाहर था, इसलिए यह कहना कि उसने आठ साल अतिरिक्त जेल में बिताए, पूरी तरह सही नहीं है। लेकिन, बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता महफूज ए. नाजकी ने कोर्ट को स्पष्ट किया कि दोषी ने कम से कम 4 साल 7 महीने ज्यादा जेल में गुजारे हैं।

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन माना और मध्यप्रदेश सरकार को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश सुनाया।

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