मध्यप्रदेश के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का संकट: 17 विश्वविद्यालयों में 74% असिस्टेंट प्रोफेसर के पद खाली, राज्य के पाँच विश्वविद्यालयों में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं; कई विषय बिना प्रोफेसर के!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश सरकार भले ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को सबसे पहले लागू करने का दावा करती हो, लेकिन ज़मीनी हालात इसके ठीक उलट तस्वीर पेश कर रहे हैं। राज्य के 17 सरकारी विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा की रीढ़ माने जाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसरों की भारी कमी सामने आई है। विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने खुद स्वीकार किया कि कुल 1069 स्वीकृत पदों में से 793 पद खाली हैं, यानी करीब 74 प्रतिशत पदों पर आज भी स्थायी शिक्षक नहीं हैं।

सिर्फ 276 असिस्टेंट प्रोफेसर पूरे प्रदेश के विश्वविद्यालयों में

इन रिक्तियों का सीधा असर छात्रों की पढ़ाई, पाठ्यक्रम की गुणवत्ता और विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक वातावरण पर पड़ रहा है। पूरे राज्य में 17 विश्वविद्यालयों में महज़ 276 असिस्टेंट प्रोफेसर काम कर रहे हैं, जो पूरे उच्च शिक्षा ढांचे के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह हाल तब है जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत गुणवत्तापूर्ण और समावेशी शिक्षा की बात की जाती है।

और भी चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य के पाँच विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहाँ एक भी असिस्टेंट प्रोफेसर तैनात नहीं है। इनमें छिंदवाड़ा का राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय, गुना का क्रांतिवीर तात्या टोपे विश्वविद्यालय, खरगोन का क्रांति सूर्य टंट्या भील विश्वविद्यालय, छतरपुर का महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय और सागर का रानी अवंतीबाई लोधी विश्वविद्यालय शामिल हैं। यानी इन संस्थानों में किसी भी विषय की पढ़ाई के लिए कोई स्थायी शिक्षक मौजूद नहीं है।

तीन दर्जन से ज्यादा विषय बिना शिक्षक के

उच्च शिक्षा मंत्री ने जानकारी दी कि प्रदेश के विश्वविद्यालयों में कुल 93 विषय ऐसे हैं जिनके लिए कोई असिस्टेंट प्रोफेसर उपलब्ध नहीं है।

  • जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र, अंग्रेज़ी, इतिहास, संस्कृत, समाजशास्त्र और कंप्यूटर साइंस जैसे प्रमुख विषयों में एक भी प्रोफेसर नहीं है।

  • उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र, पर्यावरण प्रबंधन, सांख्यिकी, वाणिज्य और संस्कृत के लिए कोई शिक्षक नहीं।

  • गुना के तात्या टोपे विश्वविद्यालय में B.Sc, M.A., M.Com, PGDCA, B.Lib, M.Lib जैसे कोर्स बिना शिक्षक के चल रहे हैं।

  • रीवा के अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में व्यवसायिक अर्थशास्त्र, रूसी भाषा और मनोविज्ञान में शिक्षकों की कमी है।

  • इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में जनजातीय अध्ययन, एविएशन टूरिज़्म और कृषि विज्ञान जैसे विभाग बगैर स्थायी स्टाफ के हैं।

  • चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में योग, समाजशास्त्र, कंप्यूटर साइंस, एग्री बिजनेस मैनेजमेंट और फ्रूट टेक्नोलॉजी जैसे कोर्स बिना शिक्षक के संचालित हो रहे हैं।

स्थिति की गंभीरता को स्वीकारते हुए उच्च शिक्षा मंत्री ने विधानसभा में कहा कि जिन विषयों में स्थायी शिक्षक नहीं हैं, वहाँ अतिथि विद्वानों और समानधर्मी विषयों के शिक्षकों के माध्यम से पढ़ाई करवाई जा रही है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि यह व्यवस्था केवल “काम चलाऊ” है और इससे न छात्रों को अपेक्षित मार्गदर्शन मिल पा रहा है, न ही विषय की गहराई में जाकर पढ़ाई संभव हो पा रही है।

विधायक संजय उइके ने उठाया मुद्दा

यह पूरी जानकारी विधायक संजय उइके द्वारा पूछे गए सवाल पर दी गई, जिसमें उन्होंने पूछा था कि राज्य के विश्वविद्यालयों में कितने असिस्टेंट प्रोफेसरों के पद स्वीकृत हैं, कितने खाली हैं, और किन विषयों में कोई भी शिक्षक नहीं है। उनके सवाल ने प्रदेश की उच्च शिक्षा प्रणाली की वास्तविकता को उजागर कर दिया।

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