जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक बेहद संवेदनशील और चर्चित मामला पेश हुआ है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने खुद को दोषी ठहराने वाली सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है। जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि उनके खिलाफ की गई कार्रवाई न केवल न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि उन्हें अपने पक्ष में सफाई देने का पूरा मौका तक नहीं दिया गया। उनका कहना है कि इस पूरे घटनाक्रम में एक व्यक्ति और एक संवैधानिक पदाधिकारी — दोनों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
यह याचिका ऐसे समय पर दायर की गई है जब संसद का मानसून सत्र कुछ ही दिनों में शुरू होने वाला है, और सूत्रों के मुताबिक, सरकार जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने की तैयारी कर चुकी है। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने स्पष्ट रूप से ऐलान किया है कि वह इस प्रस्ताव का समर्थन करेगी और उसके सांसद भी हस्ताक्षर करेंगे।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है कि यह प्रस्ताव ‘महाभियोग’ नहीं है, बल्कि 1968 के जजेज़ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गठित एक जांच समिति के आधार पर लाया जा रहा है। यह समिति जांच कर अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपेगी, जिसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी। जयराम रमेश ने यह भी दोहराया कि विपक्ष जस्टिस शेखर यादव के मामले को भी जोर-शोर से उठाएगा, जिनपर सांप्रदायिक भाषण देने का आरोप है और जिनके खिलाफ राज्यसभा में 55 सांसद पहले ही प्रस्ताव दे चुके हैं।
क्या है जस्टिस वर्मा कैश कांड?
पूरा मामला 14 मार्च 2025 की रात से शुरू हुआ जब दिल्ली के लुटियंस जोन स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में रात करीब 11:35 बजे आग लग गई। अग्निशमन दल ने मौके पर पहुंचकर आग पर काबू पाया। उस वक्त जस्टिस वर्मा दिल्ली में नहीं थे। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद, 21 मार्च को मीडिया में खबरें आईं कि उनके घर के स्टोर रूम से करीब 15 करोड़ रुपए नकद मिले, जिनमें से काफी मात्रा में नोट जल गए थे।
22 मार्च को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की। समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया, और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थे। समिति ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जिसमें जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया।
जांच में क्या-क्या सामने आया?
19 जून को सार्वजनिक हुई 64 पेज की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्यों का खुलासा हुआ:
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घटनास्थल पर मौजूद गवाहों की पुष्टि: दिल्ली फायर सर्विस, दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ के अधिकारियों सहित 55 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। 10 से ज्यादा गवाहों ने यह साफ-साफ कहा कि उन्होंने स्टोर रूम में जलते हुए 500 रुपए के नोटों के ढेर देखे।
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जस्टिस वर्मा का खंडन नहीं: जांच के दौरान इलेक्ट्रॉनिक सबूत, जैसे वीडियो और फोटो, आरोपों की पुष्टि करते हैं और इन पर जस्टिस वर्मा ने कोई खंडन नहीं किया।
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घरेलू कर्मचारियों की भूमिका: दो कर्मचारियों — हनुमान शर्मा और राजेंद्र सिंह कार्की ने स्टोर रूम से जले हुए नोट निकालने की बात स्वीकारी। वायरल हुए वीडियो की आवाज उनकी ही पाई गई।
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बेटी का संदिग्ध बयान: जस्टिस वर्मा की बेटी दीया वर्मा ने वीडियो में आई आवाज को पहचानने से इनकार कर दिया, जबकि कर्मचारी ने खुद माना कि आवाज उसकी है।
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कोई एफआईआर नहीं: जस्टिस वर्मा ने इस घटना को “षड्यंत्र” बताया, लेकिन पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई। न ही उन्होंने किसी जांच की मांग की। बल्कि, उन्होंने चुपचाप इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर भी स्वीकार कर लिया।
संसद में कार्रवाई की तैयारी
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव 21 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। प्रस्ताव को लोकसभा में लाने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं। सूत्रों की मानें तो सांसदों के सिग्नेचर जुटाए जा चुके हैं। जस्टिस वर्मा फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट में पदस्थ हैं, लेकिन उन्हें किसी भी न्यायिक कार्य से वंचित रखा गया है।