शहपुरा पुलिस पर युवक की कस्टडी में बेरहमी से पिटाई का आरोप, हालत बिगड़ी तो जेल से छोड़ा – CM से जांच की मांग

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

जबलपुर ज़िले के शहपुरा थाना क्षेत्र से एक हैरान करने वाली और मानवाधिकारों को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है, जिसमें पुलिस हिरासत में एक युवक के साथ अमानवीय बर्ताव और बेरहमी से मारपीट करने के गंभीर आरोप लगे हैं। आरोप है कि शहपुरा पुलिस ने बंशीपुर निवासी 48 वर्षीय सुदर्शन सिंह को अवैध शराब के संदेह में बिना ठोस सबूत के हिरासत में लिया और थाने में उसकी बेरहमी से पिटाई की गई। इतना ही नहीं, युवक को उसी घायल अवस्था में पाटन जेल भेज दिया गया, जहां उसकी हालत और बिगड़ गई। जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हुई, तब जाकर उसे रिहा कर बहन के हवाले कर दिया गया। चार दिन बाद जब वह समाजसेवी जंग बहादुर के पास पहुंचा और आपबीती सुनाई, तब मामला सामने आया।

समाजसेवी ने इस घटना की जानकारी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को दी है और पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका आरोप है कि सुदर्शन को झूठे केस में फंसाया गया और पुलिस थाने में उसके साथ बर्बरता की गई। समाजसेवी ने दावा किया कि उसके शरीर पर गंभीर चोटें हैं – पीठ, कमर और आंख में गहरी चोट के निशान हैं, और वह ठीक से चलने या बैठने की स्थिति में भी नहीं है।

वहीं, पुलिस प्रशासन इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर रहा है। एएसपी आनंद कलादगी का कहना है कि लगाए गए आरोप निराधार हैं, और अगर किसी को शिकायत है तो वह लिखित में आवेदन दे, जांच कराई जाएगी। दूसरी ओर, सीनियर पुलिस अफसरों का कहना है कि सुदर्शन सिंह को 9 अप्रैल को महिलाओं के साथ छेड़खानी के आरोप में भीड़ ने पीटा था। उन्होंने यह भी बताया कि उसके खिलाफ पहले से अवैध शराब बिक्री के कई केस दर्ज हैं और यह कार्रवाई उसी के तहत हुई है।

पाटन उप जेल के जेलर हेमेंद्र बागरी ने पुष्टि की कि सुदर्शन को 9 अप्रैल को शहपुरा पुलिस ने जेल भेजा था और जब वह जेल पहुंचा, तब ही उसके शरीर पर मारपीट के निशान थे। जेल रजिस्टर में इस बात का उल्लेख भी किया गया और दोनों पक्षों से हस्ताक्षर भी लिए गए। जेल में 13 अप्रैल तक रखने के बाद 14 अप्रैल की सुबह जब उसकी तबीयत बिगड़ी, तब उसे तत्काल रिहा कर बाहर भेजा गया।

अब सवाल यह उठता है कि सुदर्शन की हालत ऐसी क्यों हुई? क्या पुलिस वाकई दोषी है या यह मामला शराबबंदी के खिलाफ चल रही कार्रवाई की आड़ में भीड़ और पुलिस के बीच फंसे एक इंसान की त्रासदी है? समाजसेवी जंग बहादुर द्वारा उठाई गई इस मांग ने प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री से की गई जांच की अपील के बाद इस मामले पर निगाहें टिक गई हैं कि क्या न्याय मिलेगा या फिर यह मामला भी कागज़ों में दफन हो जाएगा।

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