इंदौर से सनसनीखेज मामला: 3 साल की बच्ची वियाना ने ग्रहण किया संथारा, धार्मिक प्रक्रिया के 10 मिनट बाद ही तोड़ा दम; बनी विश्व की सबसे कम उम्र की संथारा धारण करने वाली बालिका

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

इंदौर में जैन समाज की परंपराओं और आध्यात्मिक आस्था से जुड़ा एक अत्यंत भावुक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। महज तीन साल चार महीने की मासूम बच्ची वियाना जैन ने 21 मार्च को संथारा जैसी कठिन और अंतिम धार्मिक प्रक्रिया को आत्मसात किया। और फिर कुछ ही मिनटों में वह इस संसार को छोड़कर चली गई। बच्ची ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। इलाज के तमाम प्रयासों के बावजूद जब जीवन की संभावना लगभग समाप्त हो गई, तो परिवार ने धार्मिक आस्था के साथ उसे संथारा दिलाने का निर्णय लिया।

बच्ची के माता-पिता पीयूष जैन और वर्षा जैन, दोनों आईटी प्रोफेशनल हैं। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2023 में वियाना को ब्रेन ट्यूमर हुआ था। इंदौर और फिर मुंबई में उसका इलाज कराया गया, लेकिन कोई खास सुधार नहीं हुआ। जनवरी में हुई सर्जरी के बाद भी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गई।

21 मार्च को वे वियाना को आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रहधारी राजेश मुनि महाराज के दर्शन के लिए इंदौर लेकर पहुंचे। वहां मुनिश्री ने बच्ची की हालत देखकर कहा कि यह मासूम आज की रात भी नहीं निकाल पाएगी। इसी के बाद परिजनों ने मुनिश्री के सान्निध्य में संथारा ग्रहण कराने का निर्णय लिया।

बच्ची की मां वर्षा के अनुसार, संथारा प्रक्रिया पूरे विधि-विधान, मंत्रोच्चार और धार्मिक विधियों के साथ लगभग आधे घंटे तक चली। और जैसे ही संथारा की प्रक्रिया पूर्ण हुई, महज 10 मिनट बाद वियाना ने प्राण त्याग दिए। इस भावुक और आध्यात्मिक पल में परिवार ने अपनी इकलौती बेटी को खोया, लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से उन्हें यह आत्मसंतोष भी मिला कि उन्होंने उसे सम्मानजनक मोक्ष की ओर अग्रसर किया।

परिवार ने यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की थी। लेकिन बीते बुधवार को जैन समाज के एक सम्मान समारोह में जब बच्ची के माता-पिता को मंच पर सम्मानित किया गया, तब यह मामला उजागर हुआ। सबसे बड़ी बात यह है कि इस संथारा को ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी दर्ज किया गया है। वियाना अब विश्व की सबसे कम उम्र की संथारा धारण करने वाली बालिका बन चुकी है।

परिवार ने बताया कि वियाना बचपन से ही धार्मिक संस्कारों से जुड़ी हुई थी। वह पक्षियों को दाना डालती थी, गोशाला जाती थी और पचखाण जैसे व्रत भी करती थी। उसकी दिनचर्या में धर्म और सेवा का गहरा स्थान था।

आपकी जानकारी के लिए बता दें,  संथारा प्रथा जैन धर्म की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण प्रथा है जिसे स्वेच्छा से देह त्याग के रूप में जाना जाता हैयह एक धार्मिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति को जब लगता है कि उसका जीवन समाप्त होने वाला है, तब वह धीरे-धीरे भोजन और पानी का त्याग करके मृत्यु को गले लगाता है।

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