जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर एक बार फिर बड़ा फैसला आया है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने फिलहाल प्रमोशन में आरक्षण पर रोक लगा दी है। अदालत ने साफ कहा है कि राज्य सरकार की ओर से बनाई गई नई प्रमोशन नीति के नियमों को फिलहाल लागू नहीं किया जा सकता। यानी अब जब तक इस मामले की अगली सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जाएगा। कोर्ट ने यह आदेश सपाक्स संघ द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
सपाक्स संघ की ओर से अधिवक्ता सुयश मोहन गुरु ने हाईकोर्ट में दलील दी कि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए राज्य सरकार को नए नियमों के तहत प्रमोशन में आरक्षण लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसी के आधार पर एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा है कि वह इस मामले में एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करे। मामले की अगली सुनवाई अब 15 जुलाई को होगी।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने जून 2025 में करीब 9 साल बाद नई प्रमोशन पॉलिसी लागू की थी। इसमें प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान जोड़ा गया था। इस नीति को सपाक्स संघ ने तीन अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह नीति संविधान की भावना के खिलाफ है और इससे योग्य कर्मचारियों के साथ अन्याय होगा। इससे पहले भी जब यह मामला कोर्ट में आया था तब महाधिवक्ता ने अदालत को अंडरटेकिंग दी थी कि सरकार फिलहाल प्रमोशन में आरक्षण लागू नहीं करेगी, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए।
दरअसल, मध्यप्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर विवाद काफी पुराना है। वर्ष 2016 में ही प्रमोशन पर रोक लग गई थी, क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था। राज्य सरकार ने वहां एसएलपी दायर की थी। इस वजह से पिछले 9 साल में करीब एक लाख कर्मचारी बिना प्रमोशन के ही रिटायर हो चुके हैं। सरकार ने हालांकि इन कर्मचारियों को क्रमोन्नति और समयमान वेतनमान देकर प्रमोशन जैसा लाभ देना शुरू किया है, लेकिन प्रमोशन न होने की वजह से वे पुराने ही कार्य करते रहे और पद का वास्तविक लाभ उन्हें नहीं मिल पाया।
सरकार ने कर्मचारियों में बढ़ती हताशा को देखते हुए कोर्ट में केस चलने के बावजूद बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की थी और नई प्रमोशन नीति लागू की थी। मगर अब हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार की यह कोशिश भी फिलहाल थम गई है। ऐसे में लाखों कर्मचारियों-अधिकारियों को एक बार फिर लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। अब देखना होगा कि 15 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई में कोर्ट क्या रुख अपनाता है और क्या प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कोई स्थायी हल निकलता है या मामला फिर लंबी कानूनी प्रक्रिया में उलझकर रह जाएगा।