जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कॉलेज में इन दिनों दीवारों पर गोबर लीपने को लेकर न केवल सोशल मीडिया पर बहस तेज़ हो गई है, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र संगठनों के बीच सीधा टकराव भी देखने को मिल रहा है। गर्मी से राहत के लिए क्लासरूम की दीवारों पर गोबर और मिट्टी का लेप लगाने की ‘देशी तकनीक’ न केवल हैरान कर रही है, बल्कि आधुनिक शिक्षा व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य भी बन गई है।
मामला तब सुर्खियों में आया जब कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. प्रत्यूष वत्सला का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह खुद दीवारों पर गोबर लगाती नजर आईं। प्रिंसिपल का दावा है कि यह एक ‘रिसर्च प्रोजेक्ट’ का हिस्सा है जिसका उद्देश्य पारंपरिक भारतीय ज्ञान के आधार पर थर्मल स्ट्रेस यानी गर्मी से राहत के उपाय खोजना है। उन्होंने कहा कि कॉलेज के पोर्टा कैबिन्स (टिन के कमरे) में यह प्रयोग हो रहा है और डेटा जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा।
लेकिन जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, छात्र संगठन खासकर DUSU (दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन) ने इस कदम पर सवाल उठाए। DUSU अध्यक्ष रौनक खत्री ने मंगलवार को प्रिंसिपल के ऑफिस की दीवारों पर खुद गोबर लगा दिया और कहा – “ठंडक तो सबको मिलनी चाहिए। जब छात्र इस गोबर की टेक्नोलॉजी में बैठ सकते हैं, तो प्रिंसिपल भी उसमें काम करें।”
इस विवाद में तब और आग लगी जब खुद दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “अगर इस तरीके से गर्मी कम की जा सकती है तो प्रिंसिपल को पहले इसे अपने घर और ऑफिस में आज़माना चाहिए।” उन्होंने यह भी साफ किया कि कॉलेज के पास फंड की कोई कमी नहीं है और प्रिंसिपल को चाहिए था कि फैन और कूलर जैसी बुनियादी सुविधाएं छात्रों के लिए उपलब्ध कराएं।
प्रोफेसर सिंह ने यह भी जोड़ा कि जब प्रिंसिपल पिछले 10 वर्षों से पद पर बनी हुई हैं, तो फिर यह जिम्मेदारी भी उन्हीं की है कि वो छात्रों के बुनियादी अधिकारों और सुविधाओं का ध्यान रखें। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि यदि यह रिसर्च है, तो इसकी वैज्ञानिकता, नैतिक स्वीकृति और छात्र हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा – इसका ठोस जवाब अभी तक नहीं दिया गया है।
विवाद यहीं नहीं थमा। DUSU अध्यक्ष रौनक खत्री ने एक वीडियो जारी कर कहा – “यह विकसित भारत की टेक्नोलॉजी है। प्रिंसिपल मैडम खुद गोबर लगा रही हैं। अगर इससे ठंडक आती है, तो हम भी गोबर लेकर आ रहे हैं – उनके ऑफिस में भी यही ठंडक का इंतज़ाम होगा।”
प्रिंसिपल वत्सला का कहना है कि इस पर प्रतिक्रिया देना जल्दबाज़ी होगी, क्योंकि यह वैज्ञानिक अध्ययन है, और इसका उद्देश्य पारंपरिक भारतीय विधियों की वैधता को परखना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने ही वीडियो रिकॉर्ड कर शिक्षकों के साथ साझा किया था और इसका कोई छुपा हुआ उद्देश्य नहीं था।
लेकिन सवाल अब सिर्फ गोबर लगाने तक सीमित नहीं रह गए हैं। यह पूरा प्रकरण अब व्यवस्था की प्राथमिकताओं, शिक्षा में बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता और तथाकथित ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ के नाम पर किए जा रहे प्रयोगों की गंभीरता पर बहस का रूप ले चुका है। छात्र वर्ग पूछ रहा है – जब सरकारी कॉलेजों में करोड़ों का बजट है, तब छात्रों को गोबर और मिट्टी की शरण क्यों?