आरएसएस पर पीएम मोदी की तारीफ से गरमाई सियासत, राम माधव ने मतभेद की अटकलों को किया खारिज; कांग्रेस बोली- मोदी को भागवत की कृपा चाहिए!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से दिए गए संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की प्रशंसा ने सियासी माहौल को और गरमा दिया है। जहां विपक्ष ने पीएम पर “मोहन भागवत को खुश करने” का आरोप लगाया, वहीं आरएसएस के वरिष्ठ नेता राम माधव ने भाजपा और संघ के बीच किसी भी तरह के मतभेद की अटकलों को पूरी तरह खारिज कर दिया है।

राम माधव बोले – भाजपा राजनीति में, संघ सामाजिक सेवा में

शनिवार को न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में राम माधव ने कहा कि भाजपा और संघ दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा – “भाजपा राजनीति के लिए और आरएसएस सामाजिक सेवा के लिए जानी जाती है। दोनों संगठन एक ही वैचारिक परिवार से जुड़े हैं और एक ही लक्ष्य की दिशा में काम करते हैं।” उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्ष पीएम मोदी के भाषण में संघ का जिक्र करने पर लगातार हमलावर है।


पीएम मोदी ने की आरएसएस की खुलकर तारीफ

15 अगस्त को लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने संघ को दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ बताया। उन्होंने कहा – “आज गर्व के साथ मैं कहना चाहता हूं कि 100 साल पहले आरएसएस का जन्म हुआ। पिछले 100 सालों से संघ ने व्यक्ति निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण तक के संकल्प को आगे बढ़ाया है। सेवा, समर्पण, संगठन और अनुशासन – यही इसकी पहचान है।” मोदी के इस बयान ने न सिर्फ चर्चा को जन्म दिया, बल्कि विपक्ष को भी सरकार पर निशाना साधने का नया मौका दिया।


कांग्रेस बोली – भागवत की कृपा पर निर्भर हैं मोदी

पीएम मोदी के भाषण पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री ने संघ का जिक्र दरअसल संघ प्रमुख मोहन भागवत को खुश करने के लिए किया है। उनका आरोप था कि सितंबर में जब मोदी 75 साल के हो जाएंगे, तो पद पर बने रहने के लिए उन्हें भागवत की मदद की ज़रूरत होगी।
कांग्रेस ने संघ का उल्लेख संविधान और तिरंगे का “अपमान” बताया।


75 साल की उम्र और ‘रिटायरमेंट’ की बहस

दरअसल, पीएम मोदी 17 सितंबर को 75 साल के हो जाएंगे। भाजपा में 2014 के बाद से 75 साल से ज्यादा उम्र वाले नेताओं को सक्रिय राजनीति से दूर रखने का ट्रेंड रहा है।

  • 2014 में सत्ता में आने के बाद अटल-आडवाणी युग के दिग्गज नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजा गया।

  • 2016 में आनंदीबेन पटेल और नजमा हेपतुल्लाह ने 75 की उम्र पार करने पर पद छोड़ा।

  • 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में भी इस उम्र सीमा के चलते कई नेताओं का टिकट कटा।

इसी पृष्ठभूमि में विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है कि मोदी जी भी इस ‘अनलिखित नियम’ का पालन करेंगे या नहीं।

हालांकि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस मुद्दे पर कई बार सफाई दी है। मई 2024 में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था – “भाजपा के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। मोदी जी 2029 तक देश का नेतृत्व करेंगे और आने वाले चुनावों में भी हमारा चेहरा वही होंगे।”
इसी तरह पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी साफ किया कि प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व निर्विवाद है और 2024 ही नहीं, 2029 में भी वही प्रधानमंत्री रहेंगे।

आरएसएस पर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ से शुरू हुई बहस अब उनके राजनीतिक भविष्य और 75 साल की उम्र सीमा पर केंद्रित हो गई है। जहां विपक्ष इसे “भागवत की कृपा पर निर्भरता” बता रहा है, वहीं भाजपा इसे पूरी तरह खारिज कर रही है। इस पूरे विवाद के बीच राम माधव का बयान संघ और भाजपा के रिश्तों को लेकर साफ संदेश देता है कि दोनों संगठन अलग-अलग भूमिकाओं में काम करते हुए भी एक ही वैचारिक परिवार का हिस्सा हैं।

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