जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुख्य प्रशासिका और अध्यात्मिक धरोहर की प्रतीक राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का मंगलवार को 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में सोमवार रात 1:20 बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से संपूर्ण ब्रह्माकुमारी परिवार और देश-विदेश में फैले अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गई। बुधवार सुबह आबूरोड के शांतिवन से उनकी अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई जो माउंट आबू होते हुए संस्थान के प्रमुख केंद्रों से गुज़री। यात्रा के दौरान ज्ञान सरोवर, ग्लोबल अस्पताल, पांडव भवन और ब्रह्माकुमारी म्यूजियम में उनके पार्थिव शरीर को ले जाया गया, जहां हज़ारों श्रद्धालुओं ने नम आंखों से उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी।
गुरुवार सुबह 10 बजे शांतिवन परिसर में दादी के कॉटेज के सामने स्थित गार्डन में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। अंतिम यात्रा के दौरान हर मार्ग, हर द्वार, हर केंद्र में भक्ति और श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा। “ओम शांति” के स्वर और पुष्पवर्षा के बीच, दादी की स्मृतियाँ जैसे जीवंत हो उठीं।
बता दें, दादी रतनमोहिनी का जन्म 25 मार्च 1925 को हैदराबाद, सिंध (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मी था। मात्र 12 वर्ष की आयु में वे ब्रह्माकुमारी संस्थान के संपर्क में आईं और 13 वर्ष की उम्र में संस्था से पूर्ण रूप से जुड़ गईं। उन्हें बचपन से ही अध्यात्म में गहरी रुचि थी और यही उनकी पहचान बन गई। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण ईश्वर सेवा और आत्म कल्याण को समर्पित था।
दादी का जीवन तपस्या, सेवा और अनुशासन का अद्वितीय उदाहरण था। उन्होंने 70 हजार किलोमीटर से अधिक पदयात्रा कर भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया। 1985 में उन्होंने 13 बड़ी पदयात्राएं कीं और 2006 में 31 हजार किलोमीटर की यात्रा पूरी की। उनके जीवन का उद्देश्य था – “हर आत्मा तक ईश्वरीय ज्ञान और शांति पहुँचाना।”
संस्थान में उनका योगदान सिर्फ प्रशासन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने हजारों बहनों को प्रशिक्षण देकर ब्रह्माकुमारी संस्था का अभिन्न अंग बनाया। वे युवाओं के बीच विशेष रूप से सक्रिय थीं और युवा प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा के रूप में उन्होंने मानवीय मूल्यों का संचार कर समाज को श्रेष्ठ दिशा देने का कार्य किया। देशभर के 4600 सेवा केंद्रों पर कार्यरत 46 हजार से अधिक बहनों को उन्होंने मार्गदर्शन व प्रशिक्षण प्रदान किया।
बता दें, दादी के निधन पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने गहरा दुख व्यक्त किया। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दादी के योगदान को अविस्मरणीय बताते हुए उन्हें भारतीय संस्कृति की सशक्त वाहक बताया। फिल्म अभिनेता अनुपम खेर सहित अनेक प्रसिद्ध हस्तियों ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की।
वहीं, दादी रतनमोहिनी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक सेवा कार्यों से खुद को जोड़े रखा। वे प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में 3:30 बजे उठती थीं और रात 10 बजे तक संस्थान की विभिन्न सेवाओं में लगी रहती थीं।