जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश के पैरामेडिकल कॉलेजों की एडमिशन प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जाहिर की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब उसने 16 जुलाई के आदेश पर पहले ही रोक लगा दी है, तो उसके बाद भी हाई कोर्ट द्वारा आगे निर्देश देना संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी 8 अगस्त को हाई कोर्ट द्वारा दिए गए नए निर्देशों पर की और तत्काल उन पर रोक लगा दी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि, “हम हाई कोर्ट पर प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रखते, लेकिन उन्हें न्यायिक औचित्य के महत्व का ध्यान रखना चाहिए।”
विवाद की पृष्ठभूमि
16 जुलाई 2025 को, लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने शैक्षणिक वर्ष 2023-24 और 2024-25 के लिए पैरामेडिकल कोर्स की एडमिशन प्रक्रिया और कॉलेजों की मान्यता पर रोक लगा दी थी। हाई कोर्ट ने यह सवाल उठाया था कि 2023-24 सत्र की मान्यता प्रक्रिया 2025 में शुरू होना अतार्किक है और पिछली तारीख से (रेट्रोस्पेक्टिव) मान्यता देना उचित नहीं है।
इस आदेश के खिलाफ पैरामेडिकल काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 1 अगस्त 2025 को सीजेआई बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे (रोक) लगा दी। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता (लॉ स्टूडेंट्स) का पैरामेडिकल से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, इसलिए एडमिशन प्रक्रिया रुकना उचित नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का पहला आदेश और उसके बाद का घटनाक्रम
सुप्रीम कोर्ट के पहले आदेश के बाद 2023-24 और 2024-25 सत्रों की एडमिशन प्रक्रिया दोबारा शुरू होने का रास्ता साफ हो गया था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि हाई कोर्ट मामले की सुनवाई जारी रख सकता है, लेकिन क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (QCI) की जांच प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
इसके बावजूद 8 अगस्त 2025 को हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच (जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला) ने पैरामेडिकल काउंसिल को आदेश दिया कि सभी कॉलेजों की मान्यता से जुड़े दस्तावेज जमा किए जाएं और अगली सुनवाई की तारीख 12 अगस्त तय कर दी।
यही कदम सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी का कारण बना। शीर्ष अदालत ने माना कि यह कार्रवाई उसके पहले से दिए गए आदेश के विपरीत है।
छात्रों पर सीधा असर
हाई कोर्ट के 16 जुलाई के आदेश के बाद हजारों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया था। 2022-23 और 2023-24 में एडमिशन लेने वाले कई छात्रों की डिग्री पर भी सवाल खड़े हो गए, क्योंकि सीबीआई जांच में कई कॉलेज अयोग्य पाए गए थे।
छात्रों ने मोटी फीस भरकर प्रवेश लिया था और अब वे मानसिक व आर्थिक दबाव झेल रहे हैं। महामारी के समय कई राज्यों में पैरामेडिकल कोर्स समय पर शुरू नहीं हो सके थे, जिसके चलते स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रशिक्षित स्टाफ की कमी बनी हुई है। पैरामेडिकल काउंसिल का तर्क है कि हाई कोर्ट का आदेश जारी रहने पर यह कमी और बढ़ जाती और पूरी एडमिशन प्रक्रिया ठप हो जाती।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में स्पष्ट कर दिया है कि जब शीर्ष अदालत किसी आदेश पर रोक लगा देती है, तो निचली अदालतों को उसके विपरीत कदम नहीं उठाना चाहिए। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि इस तरह की स्थितियां न्यायिक व्यवस्था में अनावश्यक जटिलता और भ्रम पैदा करती हैं।