मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण विवाद : 6 साल से कोर्ट में अटका मामला, 28 अगस्त को होगी सर्वदलीय बैठक; कांग्रेस का आरोप – “सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दें, बैठक का कोई मतलब नहीं”!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देने का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। बीते छह वर्षों से यह मामला अदालत की दहलीज पर उलझा हुआ है। राज्य सरकार ने इसे सुलझाने के लिए 28 अगस्त को सर्वदलीय बैठक बुलाने की घोषणा की है। हालांकि, इस पहल पर कांग्रेस ने ऐतराज जताया है और इसे समय की बर्बादी बताया है।

कांग्रेस का आरोप – “सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दें, बैठक का कोई मतलब नहीं”

भोपाल स्थित कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पीसीसी चीफ जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार पर सीधा हमला बोला। पटवारी ने कहा कि जब मुख्यमंत्री और मंत्री खुद यह स्वीकार करते हैं कि ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देना है, तो फिर सर्वदलीय बैठक की कोई आवश्यकता नहीं।

उन्होंने कहा – “कमलनाथ सरकार के समय ओबीसी को 27% आरक्षण देने का अध्यादेश विधानसभा में लाया गया था और वह कानून बन चुका है। ऐसे में सरकार को दो दिन के भीतर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर केस वापस लेना चाहिए।”

वकीलों पर 100 करोड़ रुपए खर्च करने का आरोप

कांग्रेस ने सरकार पर सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने के नाम पर भारी-भरकम खर्च का भी आरोप लगाया। पटवारी ने कहा कि बीते छह वर्षों में वकीलों की फीस पर करीब 100 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।

उनके अनुसार –

  • अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता को एक-एक पेशी पर 25 लाख रुपए दिए गए।

  • एक अन्य वरिष्ठ वकील को हर पेशी के 22 लाख रुपए दिए गए।

  • वकीलों की अलग-अलग टीम को भी बड़ी रकम अदा की गई।

पटवारी ने सवाल उठाया कि जब सरकार खुद आरक्षण देने के पक्ष में है, तो करोड़ों रुपए वकीलों पर क्यों खर्च किए गए?

सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस भी रखेगी पक्ष

कांग्रेस ने ऐलान किया कि अब वह भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को मजबूती से उठाएगी। पार्टी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और विवेक तन्खा कोर्ट में ओबीसी वर्ग का पक्ष रखेंगे।

इसके अलावा, कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने की भी तैयारी की है। पार्टी का कहना है कि जिन अधिकारियों और जिम्मेदार लोगों ने ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण लागू नहीं होने दिया, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

शिवराज सिंह चौहान और मोहन यादव की सरकार पर कांग्रेस भले ही देरी और लापरवाही का आरोप लगा रही हो, लेकिन सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर इसे सहमति से सुलझाने की कोशिश बताई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओबीसी वर्ग मध्यप्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका रखता है। ऐसे में आरक्षण का मुद्दा आगामी चुनावों पर सीधा असर डाल सकता है।

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