जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
महाराष्ट्र के बहुचर्चित मालेगांव बम ब्लास्ट केस में एक बार फिर फैसला टल गया है। एनआईए की विशेष अदालत ने 8 मई को सुनवाई के दौरान मुंबई हाईकोर्ट से 31 जुलाई तक का समय मांगा, जिसके बाद अब माना जा रहा है कि 31 जुलाई 2025 को इस बहुप्रतीक्षित मामले में निर्णय सुनाया जाएगा। इस मामले में भोपाल से पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, समीर कुलकर्णी, सुधाकर द्विवेदी सहित कुल 12 आरोपी हैं जिन पर आतंकी साजिश, हत्या, धार्मिक उन्माद फैलाने और विस्फोट करने जैसे गंभीर आरोप हैं।
यह मामला 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए धमाके से जुड़ा है, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 101 घायल हुए थे। विस्फोट उस वक्त हुआ जब भीड़ एक धार्मिक स्थल से लौट रही थी। धमाके के बाद पूरे इलाके में दहशत फैल गई थी और मौके पर पहुंची पुलिस को करीब 15 हजार लोगों की उग्र भीड़ ने घेर लिया था। नाराज लोगों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए और वाहन क्षतिग्रस्त हो गए।
जांच में एफएसएल टीम को 5 अहम सुराग मिले, जिनके मुताबिक ब्लास्ट में आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। एक मोटरसाइकिल, जो साध्वी प्रज्ञा के नाम से रजिस्टर्ड थी, उसकी सीट के नीचे टाइमर डिवाइस लगाई गई थी। बाइक का ईंधन टैंक फटने से तबाही और ज्यादा बढ़ी। विस्फोट में बॉल बेयरिंग, थ्रेडेड कास्ट आयरन के टुकड़े भी पाए गए, जो जानलेवा प्रभाव बढ़ाने के लिए विस्फोटक में जोड़े गए थे।
इस केस की शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी। 23 अक्टूबर 2008 को साध्वी प्रज्ञा को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद एक-एक कर 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल थे। 26 अक्टूबर 2008 को केस एटीएस से लेकर एनआईए को सौंपा गया और एनआईए ने 2011 में प्रज्ञा ठाकुर समेत कई आरोपियों को क्लीन चिट दे दी। लेकिन अप्रैल 2025 में एनआईए ने यू-टर्न लेते हुए अदालत में कहा कि आरोपियों को बेकसूर मानना गलत था और उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
अदालत में 323 गवाह पेश किए गए, जिनमें से 32 ने अपने बयान बदल लिए। इसके बावजूद अभियोजन पक्ष ने आरोपियों को कड़ी सजा, यहां तक कि कैपिटल पनिशमेंट (फांसी) की मांग की। वहीं, बचाव पक्ष का कहना है कि आरोपियों को झूठे सबूतों के आधार पर फंसाया गया है और सुप्रीम कोर्ट तक ने मकोका हटाने का आदेश दिया था, जिसे एटीएस ने गलत तरीके से लगाया था।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कोर्ट में अपनी बात रखते हुए कहा, “सत्यमेव जयते पर मेरा पूर्ण विश्वास है। मेरे खिलाफ साजिश है, मैं हमेशा देशद्रोहियों की दुश्मन रहूंगी।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एटीएस उन्हें जान से मार सकती थी। उनके वकील जेपी मिश्रा ने दावा किया कि “31 जुलाई को पूरी दुनिया को पता चल जाएगा कि किस तरह साध्वी को फंसाया गया।”
जांच में सामने आया कि 2007 में कर्नल पुरोहित ने ‘अभिनव भारत’ नाम का संगठन शुरू किया, जिसका उद्देश्य एक हिंदू राष्ट्र बनाना बताया गया। फरीदाबाद, भोपाल, उज्जैन, इंदौर, नासिक में गुप्त मीटिंग्स कर साजिश रची गई। कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स की व्यवस्था की और आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के घर में बम तैयार किया गया। जांच में सैटेलाइट कॉल डिटेल्स, हथियार, टाइमर डिवाइस और ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग्स जैसे पुख्ता सबूत भी पेश किए गए।
आरोपी कर्नल पुरोहित ने 21 लाख रुपए का फंड संगठन के लिए इकट्ठा किया था, जिसमें से हथियार और ग्रेनेड खरीदे गए। आरोपी अजय राहिरकर के पास से 4 विदेशी हथियार और 196 कारतूस बरामद हुए। सुधाकर द्विवेदी के लैपटॉप से गुप्त बैठकों के रिकॉर्डिंग्स भी मिले।
इस केस में 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई, बयानों के पलटे जाने, एजेंसियों की राजनीतिक दबावों में झुकने के आरोपों, और धार्मिक संगठनों के खुले समर्थन के बीच अब फैसला 31 जुलाई को आएगा। यह देखना बाकी है कि कोर्ट सबूतों को कैसे मूल्यांकन करता है और आखिरकार दोषियों को सजा देता है या उन्हें बरी किया जाता है।