जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश में इस बार मई और जून की शुरुआत कुछ अलग ही अंदाज़ में हुई है। जहां हर साल मई का महीना लू और भीषण गर्मी के लिए कुख्यात रहता है, वहीं इस बार पूरे मई भर प्रदेश में आंधी-बारिश का दौर देखने को मिला। हैरानी की बात ये है कि 26 अप्रैल से शुरू हुई यह बारिश अभी तक थमी नहीं है — यानी लगातार 40 दिनों से किसी न किसी ज़िले में पानी बरस रहा है या तेज़ हवाएं चल रही हैं। बुधवार को भी भोपाल, उज्जैन, शाजापुर, छिंदवाड़ा, सतना, राजगढ़ और धार जैसे कई जिलों में बारिश हुई, और दमोह में तो सवा इंच से ज़्यादा पानी बरस गया।
तो आख़िर क्यों बदला है मध्यप्रदेश का मौसम?
इस बार मई का महीना गर्मी से ज़्यादा सिस्टम्स की सक्रियता के लिए चर्चा में रहा। मौसम वैज्ञानिक डॉ. सुरेंद्रन और डॉ. अरुण शर्मा बताते हैं कि प्रदेश में मौसम के अचानक बदलने के पीछे तीन प्रमुख मौसमी सिस्टम जिम्मेदार रहे — साइक्लोनिक सर्कुलेशन (चक्रवाती परिसंचरण), वेस्टर्न डिस्टर्बेंस (पश्चिमी विक्षोभ) और ट्रफ लाइन की लगातार सक्रियता।
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साइक्लोनिक सर्कुलेशन ने मध्यप्रदेश के ऊपर लगातार दबाव बनाए रखा, जिससे नमी युक्त हवाएं देश के अलग-अलग हिस्सों से खिंचकर यहाँ आती रहीं।
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वेस्टर्न डिस्टर्बेंस, जो आमतौर पर उत्तर भारत को प्रभावित करता है, इस बार मध्यप्रदेश तक सक्रिय रहा, जिससे गरज-चमक और तेज़ हवाओं के साथ बेमौसम बारिश हुई।
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वहीं ट्रफ लाइन, जो एक तरह की निम्न दबाव की रेखा होती है, वह बार-बार मध्यप्रदेश होकर गुज़रती रही, जिससे एक तरह का ‘रेन चैनल’ बन गया — और नतीजा ये हुआ कि हर कुछ दिनों में आंधी और बारिश लौट आती रही।
इन तीनों सिस्टम्स की संयुक्त सक्रियता ने वातावरण में लगातार नमी बनाए रखी, हवा की दिशा और गति को प्रभावित किया, और तापमान को सामान्य से नीचे बनाए रखा। यही वजह है कि मई के पूरे महीने और जून के पहले हफ्ते तक गर्मी की जगह मध्यप्रदेश में एक ‘मिनी मानसून’ जैसा अनुभव हो रहा है।
अब बात करते हैं गुरुवार की, जहां मौसम विभाग ने फिर से 27 जिलों में येलो अलर्ट जारी कर दिया है। ग्वालियर, रतलाम, मंदसौर, नीमच, भिंड, मुरैना, सागर, टीकमगढ़, डिंडोरी, खरगोन, बैतूल, और बड़वानी समेत कई जिलों में तेज़ आंधी और बारिश की संभावना जताई गई है। इन जगहों पर हवा की रफ्तार 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है, जो पेड़ गिरने, बिजली गिरने और ट्रैफिक में बाधा जैसे हालात पैदा कर सकती है।
अभी तक तो ऐसा लग रहा है कि मध्यप्रदेश में प्री-मानसून की एक्टिविटी मानसून से भी ज़्यादा सक्रिय हो चुकी है। आमतौर पर जून के पहले सप्ताह में प्रदेश में तापमान 40 डिग्री से ऊपर चला जाता है, लेकिन इस बार भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर और ग्वालियर जैसे शहरों में पारा 40 के नीचे ही बना हुआ है। बुधवार को भोपाल में अधिकतम तापमान 33 डिग्री, इंदौर में 32.3 डिग्री, उज्जैन में 35.4 डिग्री और जबलपुर में 36.7 डिग्री रहा। केवल नौगांव ही ऐसा रहा जहां तापमान 40 डिग्री तक पहुंचा।
अब सवाल उठता है — मानसून कहां है? मौसम विभाग का कहना है कि मानसून इस समय महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर ही अटका हुआ है और आगे नहीं बढ़ पा रहा है। मध्यप्रदेश में मानसून की एंट्री 10 जून के बाद ही संभावित है। यानी, जब तक मानसून आता है, तब तक आंधी-बारिश वाले इस असामान्य मौसम का सिलसिला जारी रहेगा। अगले 4 दिन — यानी 8 जून तक — प्रदेश के बड़े हिस्से में इसी तरह का मौसम बना रहेगा। बारिश और आंधी के साथ-साथ तापमान में भी राहत बनी रहेगी, लेकिन बिजली गिरने और तेज़ हवाओं से सतर्क रहने की ज़रूरत है।