जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
देश में इस साल मानसून ने चौंकाने वाली एंट्री की है। आठ दिन पहले ही मानसून केरल पहुंच गया, जो कि बीते 16 वर्षों में सबसे जल्दी हुई दस्तक है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, 2009 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब मानसून ने मई में ही भारत की धरती पर कदम रख लिया हो। आमतौर पर मानसून 1 जून को केरल आता है, लेकिन इस बार यह 25 मई को ही पहुंच गया।
मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले चार दिनों से मानसून अरब सागर में 40-50 किलोमीटर दूर रुका हुआ था। लेकिन शुक्रवार शाम को मानसूनी हवाओं ने जोर पकड़ा और शनिवार को मानसून ने केरल में दस्तक दे दी। अब यह जल्द ही तमिलनाडु और कर्नाटक के हिस्सों को भी कवर कर सकता है। अनुमान है कि एक हफ्ते के भीतर यह दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत, और 4 जून तक मध्य और पूर्वी भारत में भी पहुंच सकता है। आंकड़ों की मानें तो 1972 में सबसे देर से, 18 जून को मानसून केरल पहुंचा था, जबकि 1918 में सबसे पहले 11 मई को। ऐसे में 2025 की एंट्री भी ऐतिहासिक मानी जा रही है।
मौसम विभाग की मानें तो इस बार अल नीनो का असर नहीं दिखेगा, और मानसून सामान्य या उससे बेहतर रहने की संभावना है। पिछले साल अल नीनो के कारण मानसून कमजोर रहा था और सामान्य से 6% कम बारिश दर्ज हुई थी। अल नीनो-ला नीना दो प्रमुख जलवायु घटनाएं हैं, जो मानसून की दिशा तय करती हैं। इस बार की परिस्थिति ला नीना की ओर बढ़ रही है, जो अच्छी बारिश के संकेत देती है।
मानसून की जल्दी शुरुआत के बावजूद मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं कि यह जल्दी खत्म भी हो जाएगा। मानसून का संपूर्ण असर समुद्र के तापमान, वायुमंडलीय दबाव, हवाओं की दिशा और वैश्विक मौसम परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि मानसून की गति बनी रही तो पूरे देश को अच्छी बारिश मिल सकती है।
इस साल मानसून की समय से पहले एंट्री की बड़ी वजह अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में सामान्य से ज्यादा नमी, समुद्र का गर्म तापमान और सक्रिय चक्रवात हैं। इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन भी अब भारतीय मानसून के समय और पैटर्न को प्रभावित कर रहा है। इधर, केरल, कर्नाटक और लक्षद्वीप के समुद्री इलाकों में 27 मई तक मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है। तटीय क्षेत्रों में तेज हवाओं और आंधी की संभावना के चलते मछुआरों और आम लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है।