पचमढ़ी में 3 जून को होगी मोहन सरकार की कैबिनेट बैठक: राजा भभूत सिंह की स्मृति में लगेगी प्रतिमा, गार्डन और संस्थान का नामकरण संभावित; 9 साल पहले अधूरी रही योजना भी हो सकती है पूरी!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में आगामी 3 जून को पचमढ़ी में प्रस्तावित कैबिनेट बैठक ऐतिहासिक और स्मृतिपरक दृष्टिकोण से बेहद खास रहने वाली है। इस बैठक में न केवल शासकीय योजनाओं और विकास परियोजनाओं पर चर्चा होगी, बल्कि पचमढ़ी के गौरवशाली इतिहास से जुड़े वीर सेनानी राजा भभूत सिंह को श्रद्धांजलि स्वरूप उनकी प्रतिमा स्थापना, संस्थान के नामकरण और एक गार्डन को उनके नाम पर समर्पित करने के निर्णय भी लिए जा सकते हैं।

राजा भभूत सिंह पचमढ़ी क्षेत्र के हर्राकोट-राईखेड़ी शाखा के जागीरदार परिवार से थे। वे अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी छापामार युद्धनीति और आदिवासी समुदाय के बीच मजबूत पकड़ के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। वे नर्मदांचल में स्वतंत्रता संग्राम के एक अद्वितीय योद्धा माने जाते हैं, जिनका इतिहास धीरे-धीरे जनमानस के बीच उजागर हो रहा है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पहले भी 25 दिसंबर को राजा भभूत सिंह की स्मृति में पचमढ़ी में कैबिनेट बैठक करना चाहते थे, लेकिन उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्यप्रदेश आगमन के चलते बैठक को स्थगित करना पड़ा था। इसके बाद 20 मई को इंदौर में आयोजित लोकमाता अहिल्या देवी की स्मृति में हुई कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री ने दोबारा ऐलान किया कि 3 जून की कैबिनेट बैठक राजा भभूत सिंह की स्मृति को समर्पित होगी।

राजा भभूत सिंह की वीरगाथा को फिर से स्थापित करने के प्रयास के तहत न केवल उनकी प्रतिमा लगाने का निर्णय संभावित है, बल्कि पचमढ़ी के किसी शासकीय संस्थान या स्थल का नामकरण भी उनके नाम पर किया जा सकता है। इसके साथ ही, पचमढ़ी का एक प्रमुख गार्डन भी राजा भभूत सिंह को समर्पित करने की योजना है। नौ साल पहले भाजपा सरकार द्वारा मटकुली में उनकी प्रतिमा लगाने की घोषणा की गई थी, लेकिन वह योजना अमल में नहीं आ पाई थी। अब मोहन सरकार उस अधूरी योजना को साकार रूप देने की तैयारी में है।

कैबिनेट बैठक की तैयारियों को लेकर नर्मदापुरम प्रशासन सक्रिय हो गया है। बैठक की संभावित जगहों में पाइन फॉरेस्ट और ग्रैंड व्यू होटल का लॉन शामिल हैं। यदि मौसम अनुकूल रहा तो पाइन फॉरेस्ट को प्राथमिकता दी जाएगी, जहां पहले भी कैबिनेट बैठक हो चुकी है। खराब मौसम की स्थिति में ग्रैंड व्यू होटल के लॉन में डोम बनाकर बैठक आयोजित की जाएगी। इसके अतिरिक्त, राजभवन परिसर को भी बैकअप लोकेशन के रूप में तैयार किया जा रहा है।

इतिहासकारों के अनुसार राजा भभूत सिंह के दादा ठाकुर मोहन सिंह ने 1819-20 में नागपुर के पेशवा अप्पा साहेब भोंसले का साथ देते हुए अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था। सीताबर्डी के युद्ध में अप्पा साहेब को जब अंग्रेजों द्वारा अपमानजनक संधि के लिए मजबूर किया गया, तब उन्होंने भेष बदलकर नर्मदांचल की ओर रुख किया और महादेव की पहाड़ियों में कई दिनों तक गुप्त रूप से ठहरकर आदिवासी समुदाय को संगठित किया।

भभूत सिंह का संघर्ष यहीं नहीं रुका। अक्टूबर 1858 में तात्या टोपे के साथ मिलकर उन्होंने सांडिया के पास नर्मदा नदी पार की और स्वतंत्रता आंदोलन की योजना बनाई। पचमढ़ी में आठ दिन तात्या टोपे उनके साथ रुके और रणनीति बनाई। हर्राकोट के जागीरदार भभूत सिंह का आदिवासी समाज पर गहरा प्रभाव था, जिसे उन्होंने संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ लगातार संघर्ष किया।

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, सोहागपुर के थानेदार द्वारा की गई मुर्गियों की मांग को अपमान समझते हुए भभूत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया। इसके बाद उन्होंने देनवा घाटी में अंग्रेजी मिलिट्री और मद्रास इन्फेंटरी की टुकड़ी को करारी शिकस्त दी। उनकी छापामार युद्ध शैली ने उन्हें “नर्मदांचल का शिवाजी” बना दिया था।

अंग्रेज उन्हें पकड़ नहीं पाए, इसलिए उन्होंने मद्रास इन्फेंटरी की सहायता ली। लेकिन भभूत सिंह 1860 तक लगातार संघर्ष करते रहे। अंततः अंग्रेज उन्हें पकड़ने में सफल हुए और जबलपुर में फांसी या गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इस बारे में ऐतिहासिक संदर्भों में अलग-अलग मत हैं, परंतु यह निश्चित है कि 1860 में वे शहीद हो गए।

ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार वे सतपुड़ा के घने जंगलों में मधुमक्खियों का भी उपयोग करते थे—युद्ध में अंग्रेजों पर मधुमक्खियों के छत्ते फेंककर हमला करना उनकी विशेष रणनीति थी। पिपरिया-पचमढ़ी मार्ग पर स्थित ग्राम सिमारा उनकी ड्योढ़ी माना जाता है और बोरी क्षेत्र भी उनकी जागीर का हिस्सा था।

अब जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राजा भभूत सिंह की स्मृति को शासकीय स्तर पर सम्मानित करने का निर्णय लिया है, यह न केवल नर्मदांचल के इतिहास को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को अपने अज्ञात महानायकों से जोड़ने का सार्थक प्रयास भी है। 3 जून की कैबिनेट बैठक इस ऐतिहासिक सम्मान की साक्षी बनेगी।

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