जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भारतीय सेना की बहादुर अफसर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए विवादित बयान के मामले में मध्यप्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। पूरे देश की नजरें आज सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं, जहां मंत्री विजय शाह की एफआईआर रद्द करने की याचिका पर सुनवाई होनी है। लेकिन इससे पहले, इस पूरे मामले ने एक गंभीर राजनीतिक और संवैधानिक मोड़ ले लिया है।
मंत्री विजय शाह ने 11 मई को ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी दे रही सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकियों की बहन कहकर न सिर्फ सेना का अपमान किया बल्कि देश की सशस्त्र बलों में सेवा कर रही महिलाओं का भी खुला अपमान किया। मामला गर्माया, तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
इस टिप्पणी के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए, डीजीपी को विजय शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए। कोर्ट की टिप्पणी बेहद तीखी थी — “यह कोई हत्या की जांच नहीं है, बल्कि भाषण से जुड़ा मामला है, और इसकी लंबी जांच की जरूरत नहीं है।”
मंत्री शाह ने जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई, तो जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने सुनवाई से इनकार कर दिया और पूछा — “आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए? आप किस तरह के बयान दे रहे हैं? आप जिम्मेदार पद पर हैं, जिम्मेदारी निभाइए।”
उधर, भोपाल में सियासी पारा और चढ़ गया जब नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के नेतृत्व में कांग्रेस विधायक राजभवन के बाहर काले कपड़ों में धरने पर बैठ गए। उन्होंने राज्यपाल से मिलकर मंत्री शाह को बर्खास्त करने की मांग की। इसके बाद पुलिस ने धरने पर बैठे सभी कांग्रेस विधायकों को बलपूर्वक हिरासत में लेकर केंद्रीय जेल भेज दिया। हालांकि कुछ देर बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
कांग्रेस का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा। जेल से रिहा होते ही नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने मीडिया से कहा — “भारतीय जनता पार्टी निरंकुश हो चुकी है। क्या वह सेना का और महिलाओं का अपमान नहीं समझती? मीडिया ने भी इस मुद्दे को उठाया, फिर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? क्या विजय शाह बीजेपी के लिए इतने बड़े हो गए कि उन पर कानून लागू नहीं होता?”
वहीं, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा — “कांग्रेस कोर्ट का अपमान करने से बाज नहीं आएगी। वह इमरजेंसी की परंपरा वाली पार्टी है। मामला न्यायालय में है, फिर भी वे नाटक कर रहे हैं। कोर्ट का सम्मान करना हमारी प्राथमिकता है।”
इस पूरे घटनाक्रम ने मध्यप्रदेश की राजनीति में भूकंप ला दिया है। सेना जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाज़ी, विधायकों की गिरफ्तारी और अदालत के आदेशों को लेकर हो रही खींचतान ने राज्य की साख और सरकार की संवेदनशीलता दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।