जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मणिपुर की शांत वादियों में 8 मार्च की सुबह जब सूरज निकला, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि यह दिन आग, पत्थर, गोलियों और आंसू गैस के धुएं से भर जाएगा। फ्री ट्रैफिक मूवमेंट के पहले ही दिन राज्य के कांगपोकपी जिले में हालात इस कदर बेकाबू हो गए कि सड़कों पर टायर जलने लगे, गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया, और सुरक्षाबलों के वाहनों के शीशे चकनाचूर हो गए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच हुई झड़प में करीब 40 लोग घायल हुए, जबकि एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई।
कुकी समुदाय के प्रदर्शनकारियों ने पहले सड़कों को पत्थरों और जले हुए टायरों से ब्लॉक कर दिया। हालात इतने बिगड़े कि कई बसों को पलट दिया गया। लेकिन जब सुरक्षाबलों ने इन्हें हटाने की कोशिश की, तो मामला और भड़क गया। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षाबलों पर गुलेल और गोलीबारी शुरू कर दी। जवाब में सुरक्षाबलों ने आंसू गैस के गोले छोड़े, लाठीचार्ज किया और भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हरसंभव कोशिश की।
इस भयंकर झड़प के बाद कुकी-जो संगठनों ने अनिश्चितकालीन बंद का ऐलान कर दिया। ITLF और KZC ने सरकार से मांग की कि फ्री मूवमेंट के फैसले पर दोबारा विचार किया जाए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा— “हम मैतेई लोगों की स्वतंत्र आवाजाही की गारंटी नहीं दे सकते।” वहीं, प्रशासन ने हालात को काबू में करने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर सुरक्षा बढ़ा दी और पेट्रोलिंग तेज कर दी।
दरअसल, गृह मंत्री अमित शाह ने 1 मार्च को घोषणा की थी कि मणिपुर में 8 मार्च से हर सड़क पर बिना किसी रोक-टोक के आवाजाही होगी। साथ ही उन्होंने कहा था की सड़कें ब्लॉक करने वालों पर सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। इस फैसले के खिलाफ कुकी समुदाय लामबंद हो गया और पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। इस बीच, मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के 9 फरवरी को इस्तीफा देने के बाद राज्य में 13 फरवरी से राष्ट्रपति शासन लागू है। राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने उपद्रवियों से सभी लूटे गए हथियार सरेंडर करने को कहा था। अब तक 500 से ज्यादा हथियार सरेंडर किए जा चुके हैं।
वहीं, मणिपुर के मुख्य सचिव पीके सिंह ने कहा कि हम राज्य में सामान्य स्थिति को पुनर्स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जानकारी दी कि 12 मार्च से राजधानी इंफाल और चुराचांदपुर के बीच हेलिकॉप्टर सेवाएं शुरू की जाएंगी। इसके साथ ही, उन्होंने चेतावनी दी कि सार्वजनिक परिवहन में रुकावट डालने वाले किसी भी प्रयास के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
अब सबकी नजरें सरकार पर हैं—क्या वह प्रदर्शनकारियों की मांगें मानकर कोई समाधान निकालेगी, या फिर विरोध के बीच ही फ्री मूवमेंट को जारी रखेगी? एक और बड़ा सवाल यह भी है कि क्या राष्ट्रपति शासन के तहत सरकार इतनी शक्ति दिखा पाएगी कि इस आंदोलन को खत्म कर सके?