जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
खंडवा के एक निजी अस्पताल से एक बेहद गंभीर और चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने चिकित्सा पेशे की नैतिकता और मरीजों के अधिकारों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। एक 25 वर्षीय महिला ने पाइल्स की शिकायत को लेकर शुभम हॉस्पिटल में डॉक्टर शुभांगी मिश्रा से परामर्श लिया था। डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी और बताया कि इस सर्जरी से राहत मिल जाएगी। महिला ने 24 मई 2021 को अस्पताल में भर्ती होकर ऑपरेशन कराया, लेकिन कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति फिर पहले जैसी हो गई। जब वह 31 मई को दोबारा अस्पताल पहुंची, तब एक खुलासा हुआ जिसने पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया।
महिला को जानकारी मिली कि उसका ऑपरेशन डॉक्टर शुभांगी ने नहीं, बल्कि एक पुरुष सर्जन – मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रिंकू यादव – ने किया था। यह ऑपरेशन महिला की बिना सहमति के कराया गया, जो सीधे तौर पर उसकी निजता, गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन है। इतना ही नहीं, ऑपरेशन पूरी तरह असफल रहा और गठान की समस्या जस की तस बनी रही। जब महिला और उसके पति ने डॉक्टर शुभांगी से इस गैरकानूनी और अनैतिक कदम पर सवाल किया, तो कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला।
इसके बाद महिला ने अस्पताल से अपना पैसा वापस मांगा, लेकिन अस्पताल ने इलाज की असफलता के बावजूद भुगतान लौटाने से इनकार कर दिया। मजबूर होकर पीड़िता ने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के दौरान अस्पताल पक्ष ने दलील दी कि महिला ने डॉक्टरों की सलाह के अनुसार परहेज नहीं किया, जिससे ऑपरेशन असफल हुआ। लेकिन यह तर्क फोरम को संतोषजनक नहीं लगा, खासकर इस मामले में जब बिना सहमति एक पुरुष डॉक्टर द्वारा निजी ऑपरेशन कराया गया।
पीड़िता के वकील प्रशांत मालवीय के अनुसार, ऑपरेशन के लिए महिला के परिवार ने 30 हजार रुपए अस्पताल में जमा किए थे, और मेडिकल जांच, दवाइयों व अन्य खर्चों को मिलाकर कुल खर्च 50 हजार रुपए तक पहुंच गया था। पीड़िता ने फोरम से यही राशि क्षतिपूर्ति के रूप में मांगी थी। लेकिन फोरम ने चिकित्सकीय लापरवाही और सेवा में कमी का दोषी मानते हुए दोनों डॉक्टरों – डॉ. शुभांगी मिश्रा और डॉ. रिंकू यादव – पर 15-15 हजार रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है।
यह फैसला फोरम अध्यक्ष जेपी सिंह और सदस्य अंजलि जैन ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद सुनाया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि इलाज के दौरान लापरवाही हुई है, और बिना सहमति ऐसा ऑपरेशन गंभीर अधिकार उल्लंघन है। फोरम ने अपने आदेश में निर्देशित किया कि आदेश की प्रति प्राप्त होने के 45 दिनों के भीतर दोनों डॉक्टरों को मिलकर पीड़िता को 30 हजार रुपए का भुगतान करना होगा।