जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
महाकुंभ के इस पवित्र आयोजन में हर संप्रदाय के साधु-संतों की उपस्थिति तो दिखती ही है, लेकिन इस बार एक अनोखा जत्था खास आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। ये साधु हैं, जिन्हें हम “जोगी जंगम साधु” के नाम से जानते हैं। इनके हाथों में ढफली, ढोलक, मंजीरा और मुंह में शिव का नाम है, जो निरंतर चलता रहता है, कभी थमता नहीं। यह भजन किसी मनोरंजन का हिस्सा नहीं होते, बल्कि इनका उद्देश्य कल्पवास में बैठे साधु-संतों से भिक्षा प्राप्त करना होता है।
इन साधुओं के सिर पर मोर के पंख, मुंह में शिव का नाम, माथे पर बिंदी और कानों में पार्वती के कुंडल उनकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। इनकी भक्ति की धारा में समाया शिव का महिमा गान लोगों को मंत्रमुग्ध करता है। ये साधु अपनी पूरी श्रद्धा के साथ भजन करते हुए कल्पवासी साधुओं के पास पहुंचते हैं, और उनसे भिक्षा स्वरूप पैसे, अनाज या अन्य सामग्री प्राप्त करते हैं।
इन साधुओं की धार्मिक मान्यता भी गहरी और दिलचस्प है। माना जाता है कि भगवान शिव ने जब पार्वती से विवाह किया, तो विष्णु और ब्रह्मा को दान देने की इच्छा जताई थी, जिसे दोनों ने ठुकरा दिया था। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने जांघ पर हाथ मारा, जिससे जोगी जंगम साधुओं का संप्रदाय उत्पन्न हुआ। यही जंगम साधु आज भी संन्यासी अखाड़ों में जाकर शिव की कथा सुनाते हैं और इनके साथ जुड़े गीत गाते हैं।
जंगम साधु एक अद्भुत समुदाय हैं, जो अपनी दक्षिणा को किसी हाथ से नहीं लेते, बल्कि अपनी घंटी को उलटकर उसमें भिक्षा प्राप्त करते हैं। ये साधु विशेष रूप से शिव के उपासक होते हैं और अपनी जीविका इन अखाड़ों से मिले दान पर ही चलाते हैं। इस समर्पण और भक्ति के अद्भुत रूप को देखकर भक्तों का हृदय अभिभूत हो जाता है।
महाकुंभ में इन जंगम साधुओं की उपस्थिति न केवल एक धार्मिक संदेश देती है, बल्कि यह दिखाती है कि आस्था और श्रद्धा का एक अलग ही रूप होता है, जो हर भक्त के मन को शांति और समर्पण की ओर अग्रसर करता है।