मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा शराब घोटाला: फर्जी चालान से उड़ाए गए करोड़ों, अब ईडी की बड़ी कार्रवाई से खुलने लगी परतें; 7.44 करोड़ कैश जब्त!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश में चल रहे आबकारी घोटाले ने एक बार फिर सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को इंदौर, भोपाल और मंदसौर में शराब ठेकेदारों से जुड़े 13 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी कर 7.44 करोड़ रुपए कैश जब्त किए। साथ ही, 71 लाख रुपए बैंक खातों में फ्रीज किए गए हैं और बैंक लॉकरों को सील किया गया है। यह पूरा मामला फर्जी चालानों के जरिए हुए आबकारी घोटाले से जुड़ा है, जिसकी जांच ईडी ने वर्ष 2024 में शुरू की थी, लेकिन यह घोटाला वर्ष 2015 से 2018 के बीच अंजाम दिया गया था।

ईडी के सूत्रों के अनुसार, कार्रवाई के दौरान अचल संपत्तियों से जुड़े दस्तावेज भी जब्त किए गए हैं, जिनकी अनुमानित कीमत करोड़ों रुपए में हो सकती है। अधिकारियों का कहना है कि जांच अभी जारी है और आने वाले दिनों में इस मामले में कई गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं। ईडी ने इस कार्रवाई को इंदौर के रावजी बाजार थाने में दर्ज FIR नंबर 172/2017 के आधार पर अंजाम दिया। यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की कई गंभीर धाराओं के तहत दर्ज की गई थी, जिसमें 49.42 करोड़ रुपए के राजस्व नुकसान और अवैध एनओसी प्राप्त करने के आरोप शामिल हैं।

इस घोटाले में फर्जी चालानों के जरिए बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई। चालान में “रुपए अंकों में” सही रकम दर्ज की जाती थी लेकिन “रुपए शब्दों में” की जगह खाली छोड़ दी जाती थी। राशि जमा करने के बाद ठेकेदार उसी खाली जगह में लाखों की बढ़ी हुई राशि लिखकर फर्जी चालान बना लेते थे। इन फर्जी चालानों के आधार पर शराब की आपूर्ति के लिए एनओसी प्राप्त कर ली जाती थी, जिससे सरकार को करोड़ों रुपए का घाटा हुआ।

घोटाले की असल परतें तब खुलीं जब 2018 में इसकी पहली शिकायत सामने आई। ईडी ने 2024 में इस पर गंभीरता से जांच शुरू की और आबकारी विभाग से आंतरिक जांच रिपोर्ट, शराब ठेकेदारों के बैंक अकाउंट्स और वसूली का पूरा ब्यौरा मांगा। इस दौरान यह भी सामने आया कि आबकारी विभाग और शराब कारोबारियों के बीच मिलीभगत थी, जिसने इस घोटाले को संभव बनाया।

ईडी की जांच में अब तक जो नाम सामने आए हैं, उनमें कई बड़े शराब ठेकेदार शामिल हैं — एमजी रोड समूह के अविनाश और विजय श्रीवास्तव, जीपीओ चौराहा समूह के राकेश जायसवाल, तोप खाना समूह के योगेंद्र जायसवाल, देवगुराड़िया समूह के राहुल चौकसे, गवली पलासिया समूह के सूर्यप्रकाश अरोरा, और अन्य आरोपियों में गोपाल शिवहरे, लवकुश और प्रदीप जायसवाल के नाम हैं। इन सभी पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं और सरकारी राजस्व की चोरी के आरोप हैं।

गौरतलब है कि इस घोटाले के समय यानी 2015 से 2017 के दौरान इंदौर की शराब दुकानें क्रमशः 556 करोड़, 609 करोड़ और 683 करोड़ में नीलाम हुई थीं। कुल मिलाकर लगभग 1700 करोड़ के चालानों की जांच की गई, लेकिन 11 ऑडिटरों की टीम द्वारा की गई जांच के बावजूद कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया।

ईडी की इस कार्रवाई ने साफ कर दिया है कि शराब कारोबार की आड़ में बड़े पैमाने पर वित्तीय फर्जीवाड़ा किया गया, जिसमें न सिर्फ कारोबारियों की भूमिका रही, बल्कि विभागीय अफसरों की मिलीभगत भी साफ नजर आती है। अब देखना ये है कि क्या इस बार दोषियों को कानून के शिकंजे में लाया जा सकेगा या ये मामला भी पिछली बड़ी जांचों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।

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