जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश में आयुर्वेद शिक्षा को लेकर एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। केंद्रीय आयुष मंत्रालय और नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन (NCISM), नई दिल्ली ने शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए मध्यप्रदेश के कुल 18 आयुर्वेद मेडिकल कॉलेजों को मान्यता प्रदान कर दी है। इनमें प्रदेश के 7 शासकीय (सरकारी) और 11 निजी आयुर्वेद कॉलेज शामिल हैं। इससे मध्यप्रदेश, पूरे देश में दूसरे स्थान पर आ गया है जहां सबसे अधिक आयुर्वेद कॉलेजों को मान्यता मिली है।
इन मान्यता प्राप्त कॉलेजों में भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, उज्जैन, इंदौर और बुरहानपुर के शासकीय आयुर्वेद कॉलेज शामिल हैं। वहीं, भोपाल के ही स्कूल ऑफ आयुर्वेद साइंस, सरदार अजीत सिंह स्मृति आयुर्वेद कॉलेज, रामकृष्ण कॉलेज ऑफ आयुर्वेद और मानसरोवर आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज को भी 100-100 यूजी (BAMS) सीटों पर मान्यता दी गई है। भोपाल के पं. खुशीलाल शर्मा शासकीय आयुर्वेद कॉलेज को तो 75 अंडरग्रेजुएट (BAMS) और 74 पोस्टग्रेजुएट (MD/MS) सीटें स्वीकृत की गई हैं।
आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. राकेश पाण्डेय ने बताया कि इस साल नीट 2025-26 के रिजल्ट के आधार पर ही इन कॉलेजों में दाखिले होंगे। मध्यप्रदेश में लगभग 3000 यूजी (BAMS) सीटें हैं, जबकि पूरे देश में कुल 598 मान्यता प्राप्त आयुर्वेद कॉलेजों में 42 हजार से ज्यादा सीटें उपलब्ध हैं। यह छात्रों के लिए एक बेहतरीन अवसर है, जिससे पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भी नया विस्तार मिलेगा।
देशभर में भी NCISM ने विभिन्न राज्यों के कई कॉलेजों को मान्यता दी है। इनमें उत्तर प्रदेश के 23, महाराष्ट्र के 33, कर्नाटक के 13, उत्तराखंड के 7, पंजाब के 4, ओडिशा के 4, छत्तीसगढ़ के 3, गुजरात के 3, हरियाणा के 2, असम, हिमाचल, केरल, पांडिचेरी, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल का 1-1 कॉलेज शामिल हैं।
हालांकि अभी भी देशभर के करीब 482 आयुर्वेद कॉलेजों की मान्यता पर NCISM का निर्णय लंबित है। मध्यप्रदेश के भी 16 अन्य कॉलेजों की फाइलें विचाराधीन हैं। इसी को लेकर डॉ. राकेश पाण्डेय ने केंद्रीय आयुष मंत्रालय और NCISM से अपील की है कि शेष कॉलेजों की मान्यता पर जल्द फैसला लिया जाए ताकि नीट आयुष काउंसलिंग समय पर शुरू हो सके और हज़ारों छात्रों को अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े।
इस निर्णय से साफ है कि केंद्र सरकार और NCISM पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह गंभीर है। इससे न सिर्फ प्रदेश के छात्रों को फायदा मिलेगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में भी आयुर्वेद की हिस्सेदारी मजबूत होगी। आने वाले वर्षों में आयुर्वेद को वैश्विक मंच पर और अधिक सम्मान और अवसर मिलेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं।