मध्यप्रदेश में मातृ मृत्यु दर सबसे ज्यादा: सरकार ने बदले GNM कोर्स के नियम, हाईकोर्ट ने दी मंजूरी!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्य प्रदेश एक बार फिर एक बेहद चिंताजनक आंकड़े के चलते सुर्खियों में है। मातृ मृत्यु दर के मामले में प्रदेश पूरे देश में सबसे ऊपर है। इसी को लेकर राज्य सरकार ने कमर कस ली है। सरकार ने हाल ही में जीएनएम यानी जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी पदों पर भर्ती के नियमों में बड़ा बदलाव किया। अब इस पद के लिए 12वीं में बायोलॉजी विषय होना अनिवार्य कर दिया गया है।

सरकार का तर्क है कि बायोलॉजी पढ़े हुए छात्र-छात्राएं ही भविष्य में माताओं और नवजातों की बेहतर देखभाल कर पाएंगे, जिससे मातृ मृत्यु दर को कम किया जा सके। लेकिन इस नियम में बदलाव से एक नया संकट पैदा हो गया।

हरदा के लाल बहादुर शास्त्री व्यवसायिक अध्ययन महाविद्यालय समेत प्रदेश के 39 अन्य संस्थानों ने इस नियम के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इनकी दलील थी कि बायोलॉजी की अनिवार्यता के चलते जीएनएम कोर्स में आवेदन करने वालों की संख्या बुरी तरह गिर गई है। इस साल महज 139 सीटें ही भर पाईं, जबकि 8388 सीटें खाली रह गईं। ऐसे में इन संस्थानों ने कोर्ट से सरकार को नियमों में ढील देने का निर्देश देने की गुहार लगाई, ताकि खाली सीटों को भरा जा सके।

लेकिन जब यह मामला जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचा, तो जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस डीके पालीवाल की डिवीजन बेंच ने सरकार के फैसले को पूरी तरह जायज़ ठहराया। कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील क्षेत्र में योग्य उम्मीदवार ही नियुक्त होने चाहिए। नियमों में कड़ाई जनता के हित में ही है।

हालांकि कोर्ट ने सरकार को एक अहम सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि केवल कड़े नियम बना देने से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। सरकार को चाहिए कि वह गांव-देहात में स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ाए, ज्यादा एम्बुलेंस मुहैया कराए और सबसे ज़रूरी — वहां तक पहुंचने के लिए पक्की और बेहतर सड़कें बनाए, ताकि मरीजों को समय पर इलाज मिल सके।

सरकार की तरफ से उपमहाधिवक्ता अभिजीत अवस्थी ने पक्ष रखा, जबकि इंडियन नर्सिंग काउंसिल की ओर से अधिवक्ता मोहन सौंसरकर पेश हुए। कोर्ट के इस फैसले के बाद साफ है कि अब जीएनएम कोर्स में दाखिला उन्हीं छात्रों को मिलेगा, जिन्होंने 12वीं बायोलॉजी के साथ पास की है।

यानी प्रदेश में मातृ मृत्यु दर कम करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा सकता है। लेकिन साथ ही यह भी सच है कि इस नियम से फिलहाल नर्सिंग की हजारों सीटें खाली पड़ी हैं। सरकार और कॉलेजों के सामने अब चुनौती है कि योग्य उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाने के लिए आगे क्या रणनीति बनाई जाए।

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