राजभवन में ‘कर्मयोगी बने’ कार्यशाला का शुभारंभ, CM ने सहभागिता कर अपने विचार किए साझा; राज्यपाल मंगुभाई पटेल बोले – कर्मयोगी भाव, भावनाओं के साथ प्रतिबद्ध प्रयास समय की जरूरत

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

राज्यपाल मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में मिशन कर्मयोगी को लेकर नई पहल की जा रही है। यह पहल केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते राष्ट्र के उस संकल्प का हिस्सा है, जो कर्मयोग की अवधारणा को जीवन का आधार बनाकर देश को 21वीं सदी का वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनाने का प्रयास कर रहा है।

राजभवन के सांदीपनि सभागार में आयोजित कर्मयोग कार्यशाला का उद्देश्य केवल बौद्धिक मंथन तक सीमित नहीं था, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक प्रभावी कार्य संस्कृति को विकसित करने की पहल है। राज्यपाल पटेल ने अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शी नीतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत इतिहास के ऐसे मोड़ पर है, जहां से यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि 21वीं सदी भारत की सदी होगी। लेकिन इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें कर्मयोग के मार्ग पर चलना होगा। उन्होंने कर्मयोग को केवल एक आध्यात्मिक अवधारणा के रूप में नहीं, बल्कि दैनिक जीवन की कार्यशैली के रूप में अपनाने की जरूरत बताई।

राज्यपाल पटेल ने कहा कि आज भारत विज्ञान, अर्थव्यवस्था और वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति कर रहा है। यह प्रगति केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि नागरिकों के कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित प्रयासों से संभव हुई है। 4-5 दशक पहले विकसित देशों के सामने भी ऐसे ही मोड़ आए थे, लेकिन वहां के नागरिकों ने अपने कार्यों से अपने राष्ट्र की तकदीर बदल दी। यही कर्मयोग की शक्ति है।

उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि शिक्षकों का दायित्व केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, बल्कि कर्मयोगी पीढ़ी का निर्माण करना भी है। कर्मयोग वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ, असफलता या समाज की आलोचना की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यपथ पर चलता रहता है। कर्मयोग केवल मेहनत करना नहीं, बल्कि कर्तव्य को निष्काम भाव से निभाने की कला है।

कार्यशाला में उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि कर्मयोग केवल आदर्शवाद नहीं, बल्कि लक्ष्य पूर्ति का सबसे प्रभावी तरीका है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्रियां देना नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों का निर्माण करना है। यह तभी संभव है जब विद्यार्थी अपने अध्ययन काल से ही कर्मयोग को अपने जीवन का हिस्सा बना लें।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कार्यशाला को कर्मवाद के पुनर्जागरण की पहल बताया। उन्होंने कहा कि सौभाग्य की बात है कि 5 हजार साल पहले कर्मयोग का जो चिंतन भारत की धरती से निकला था, वह आज फिर से मध्यप्रदेश से पुनर्जीवित हो रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कर्मयोगी ऋषि परंपरा का प्रतिरूप बताते हुए कहा कि सुशासन की जो कार्यशैली उन्होंने विकसित की है, वही मिशन कर्मयोगी का मूल है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इस बात पर जोर दिया कि कर्मयोग केवल शारीरिक श्रम या काम करने की प्रवृत्ति नहीं, बल्कि एक मानसिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को छोड़कर समाज और राष्ट्र के हित में कार्य करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की विशेषता यही है कि यह अतिरंजित बातों को भी सुनती है और अच्छी बातों को अपनाकर आगे बढ़ती है। इसी कारण आज दुनिया भारतीय दर्शन से प्रेरणा ले रही है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने शिक्षा प्रणाली में अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति भी प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि तमिल, तेलुगु और अन्य भाषाओं को प्रदेश में प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा में ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिले।

बोर्ड ऑफ गवर्नर्स आई.आई.टी. कानपुर के अध्यक्ष पद्मश्री के. राधाकृष्णन ने शिक्षा में कर्मयोग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षकों को केवल शिक्षक नहीं, गुरु बनना होगा। उन्होंने श्रीमद्भगवद गीता का संदर्भ देते हुए बताया कि कर्मयोग का मार्ग व्यक्ति को समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित करता है। उन्होंने कहा कि कर्मयोग केवल शिक्षा देने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण की आधारशिला है। गुरु वही होता है, जो केवल किताबों का ज्ञान न दे, बल्कि अपने आचरण से विद्यार्थियों को कर्मयोग की ओर प्रेरित करे। मानव संसाधन क्षमता निर्माण आयोग, मिशन कर्मयोगी के सदस्य प्रोफेसर बाला सुब्रह्मण्यम ने बताया कि न्यू इंडिया के निर्माण के लिए टीम इंडिया जरूरी है और यह तभी संभव होगा जब सरकारी तंत्र में कार्य करने वाले लोग कर्मयोगी बनें। इसके लिए कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने और उनके दृष्टिकोण को कर्तव्यनिष्ठा की ओर मोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात की प्रशंसा की कि मध्यप्रदेश ने इस दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर सबसे पहले पहल की है। मिशन कर्मयोगी 2021 में शुरू हुआ था और 2022 में मध्यप्रदेश पहला राज्य बना, जिसने इसे प्रभावी रूप से लागू किया।

यूनाइटेड कॉन्शियसनेस के ग्लोबल संयोजक विक्रांत सिंह तोमर ने कार्यशाला की उपलब्धियों पर चर्चा करते हुए बताया कि इस कार्यक्रम में 78 विश्वविद्यालयों के शिक्षा जगत के प्रमुखों ने भाग लिया। उन्होंने कहा कि कर्मयोग केवल एक सैद्धांतिक अवधारणा नहीं, बल्कि इसे शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला के माध्यम से 11,700 से अधिक शिक्षक और विद्यार्थी इस अभियान से जुड़े और उन्होंने 450 प्रमुख चुनौतियों तथा उनके समाधान चिन्हित किए। कार्यशाला में प्रदेश के सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति, कुल सचिव, प्राचार्य और विभिन्न शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल हुए।

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