जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भारतीय न्यायपालिका से जुड़ा एक बड़ा और चौंकाने वाला मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की वह याचिका, जिसमें उन्होंने ‘कैश कांड’ में खुद के खिलाफ हुई कार्रवाई को चुनौती दी थी, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दी है। इस फैसले के बाद अब जस्टिस वर्मा के पास दो ही रास्ते बचे हैं – या तो वे स्वेच्छा से अपने पद से इस्तीफा दें या फिर संसद में उनके खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का सामना करें।
यह मामला केवल एक न्यायाधीश की व्यक्तिगत कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी न्यायपालिका की गरिमा और पारदर्शिता को सीधे चुनौती देता है। इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया था, जिसके बाद उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की गई। रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के आवास से कथित रूप से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने का उल्लेख है, जिसने पूरे न्यायिक ढांचे को झकझोर कर रख दिया।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है, तो आगे की दो संभावनाएं खुली हैं:
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इस्तीफा देकर सम्मानजनक विदाई: यदि जस्टिस वर्मा इस्तीफा दे देते हैं, तो उन्हें रिटायर्ड जज के तौर पर पेंशन और अन्य लाभ मिल सकते हैं। इससे वे महाभियोग की कानूनी और राजनीतिक प्रक्रिया से बच सकते हैं।
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महाभियोग का सामना: अगर वे इस्तीफा नहीं देते, तो संसद में उनके खिलाफ लंबी और कठोर महाभियोग की प्रक्रिया चलेगी, जिसके बाद अगर उन्हें पद से हटाया गया, तो उन्हें कोई पेंशन या लाभ नहीं मिलेगा।
फिलहाल स्थिति यह है कि लोकसभा में 152 और राज्यसभा में 54 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि यह प्रस्ताव अभी किसी भी सदन में औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस दिशा में तेज़ी आना लगभग तय माना जा रहा है।