जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भारत की न्यायिक व्यवस्था इन दिनों एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ उस पर खुद ही सवाल खड़े हो रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा पर उनके आवास से जली हुई नकदी मिलने के बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। अब यह मामला सिर्फ इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट या लोक-लाज का नहीं रहा, बल्कि संसद तक में महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामला संवैधानिक चुनौती का रूप ले चुका है।
सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जब वर्मा से सवाल किया कि उन्होंने इन-हाउस जांच कमेटी के समक्ष पहले ही उपस्थित होकर क्या फैसला प्रभावित करने की कोशिश की थी? — तो यह टिप्पणी पूरे विवाद को और पेचीदा बना गई। वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पैरवी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को करेगा।
मामला क्या है?
मार्च 2025 में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के एक बाहरी हिस्से में जली हुई नकदी की भारी मात्रा बरामद हुई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की एक इन-हाउस जांच समिति गठित की गई थी, जिसकी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को अप्रत्यक्ष रूप से दोषी ठहराया गया। रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग की सिफारिश भेजी गई।
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस रिपोर्ट और सिफारिश को असंवैधानिक और पक्षपाती बताते हुए रद्द करने की मांग की है। दिलचस्प बात यह है कि यह याचिका गोपनीय शीर्षक ‘XXX बनाम भारत सरकार व अन्य’ नाम से दर्ज की गई है।
संसद में भी बवाल: 150 से अधिक सांसदों की सिफारिश
संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन 21 जुलाई को संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने एलान किया कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। लोकसभा में 152 सांसदों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और राज्यसभा में भी 50 से अधिक सांसदों का समर्थन मिला है। सरकार इसे सर्वसम्मति का निर्णय बनाकर पेश करना चाहती है।
याचिका में उठाए गए गंभीर सवाल
जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में पाँच सवाल उठाए हैं:
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नकदी कब, कैसे और किसने रखी?
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असली नकदी कितनी थी?
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नकदी असली थी या नकली?
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आग लगने का कारण क्या था?
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क्या मैं (वर्मा) नकदी हटाने के लिए जिम्मेदार था?
साथ ही, उन्होंने दस कानूनी तर्क दिए हैं, जैसे:
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जांच समिति सिर्फ अनुमान और अप्रमाणित सूचनाओं पर बनी थी।
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उन्हें अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं दिया गया।
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CCTV फुटेज और भौतिक साक्ष्य नजरअंदाज किए गए।
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समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई, जिससे उनकी गंभीर मानहानि हुई।
CJI बीआर गवई ने खुद को किया अलग
इस केस में भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया है। उनका कहना है कि वे पहले इस मामले में भूमिका निभा चुके हैं, इसलिए निष्पक्ष सुनवाई के लिए उनका शामिल होना उचित नहीं होगा।