जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भारत के न्यायिक इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ गया है। आज जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित गरिमामय समारोह में पद की शपथ दिलाई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और कई वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री व न्यायपालिका के अधिकारी उपस्थित रहे।
शपथ के बाद मीडिया से बातचीत में CJI गवई की मां कमलताई ने कहा, “यह हमारी मेहनत और सेवा का फल है। मैंने हमेशा चाहा था कि मेरे बच्चे समाज की सेवा करें। भूषण ने जीवन भर ईमानदारी और संघर्ष से काम किया है।” उन्होंने यह भी बताया कि जस्टिस गवई ने एक साधारण स्कूल में पढ़ाई की और हमेशा जरूरतमंदों की आर्थिक मदद करते रहे हैं।
जस्टिस गवई की नियुक्ति कई मायनों में ऐतिहासिक है। वे भारत के केवल दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं और पहले बौद्ध CJI के रूप में इतिहास में दर्ज हो गए हैं। इससे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन 2007 में पहले दलित CJI बने थे। वर्तमान CJI संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को समाप्त हुआ, जिसके बाद वरिष्ठता के क्रम में जस्टिस गवई का नाम सबसे ऊपर था। हालांकि, उनका कार्यकाल मात्र 6 महीने का रहेगा और वे 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।
बात दें, जस्टिस गवई का सफर संघर्ष और सादगी से भरा रहा है। उनका जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की और 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस करने लगे। न्यायिक सेवा में उनकी नियुक्ति 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में हुई और 2005 में वे परमानेंट जज बन गए। सुप्रीम कोर्ट में उन्हें 24 मई 2019 को जज के रूप में पदोन्नति मिली। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया और चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाले फैसले में भी भाग लिया। उनके स्पष्ट विचार और न्यायिक दृष्टिकोण उन्हें एक निष्पक्ष और साहसी न्यायाधीश बनाते हैं। अब सभी की नजरें उनके छह महीनों के कार्यकाल पर टिकी होंगी। उनके बाद जस्टिस सूर्यकांत वरिष्ठता में आते हैं और संभावना है कि वे भारत के 53वें CJI होंगे।