जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में तीन अहम बिल पेश किए, जिनका सीधा असर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों की संवैधानिक जिम्मेदारियों पर पड़ेगा। इन बिलों के तहत यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री किसी गंभीर अपराध में गिरफ्तार होता है और 30 दिन से ज्यादा हिरासत में रहता है, तो उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा।
तीनों बिल और उनका मकसद
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गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025
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अभी तक केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था कि मुख्यमंत्री या मंत्री को गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान पद से हटाया जा सके।
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नए संशोधन के तहत, इस कमी को दूर करने के लिए 1963 के यूनियन टेरिटरीज एक्ट की धारा 45 में बदलाव किया जाएगा।
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130वां संविधान संशोधन बिल 2025
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मौजूदा संविधान में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य मंत्री को गंभीर आपराधिक आरोप में गिरफ्तारी के बाद हटाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
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संशोधन के जरिए अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में बदलाव होगा और इस स्थिति में पद छोड़ना अनिवार्य हो जाएगा।
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जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025
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2019 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 54 में बदलाव कर यह प्रावधान जोड़ा जाएगा कि गंभीर आपराधिक केस में गिरफ्तार मंत्री या मुख्यमंत्री को 30 दिन में पद छोड़ना होगा।
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विपक्ष का विरोध और हंगामा
तीनों बिलों पर लोकसभा में जमकर हंगामा हुआ। कांग्रेस और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जोरदार विरोध किया। समाजवादी पार्टी ने इन्हें “न्याय विरोधी और संविधान विरोधी” बताया। विपक्षी सांसदों ने गृहमंत्री शाह पर कागजों के गोले भी फेंके और बिलों को वापस लेने की मांग की।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ये संशोधन लोकतंत्र और सुशासन की साख को मजबूत करेंगे। उन्होंने विपक्ष को शांत करने के लिए बिलों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने का सुझाव दिया।
क्यों जरूरी माने जा रहे ये बिल?
कानून में अब तक केवल दोषी ठहराए गए जनप्रतिनिधियों को ही पद से हटाने का प्रावधान था। यानी, अदालत का अंतिम फैसला आने तक वे पद पर बने रह सकते थे।
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केजरीवाल उदाहरण: दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शराब नीति केस में ED द्वारा गिरफ्तार हुए थे। इसके बावजूद वे पद पर बने रहे और छह महीने बाद जमानत मिलने के बाद इस्तीफा दिया।
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तमिलनाडु का उदाहरण: मंत्री वी. सेंथिल बालाजी 241 दिन जेल में रहे, लेकिन मंत्री पद पर बने रहे। उनके विभाग मुख्यमंत्री ने अन्य सहयोगियों को सौंप दिए, पर पद से नहीं हटाया।
इन घटनाओं ने यह बहस छेड़ी कि गंभीर आरोपों और लंबे समय तक हिरासत में रहने वाले नेताओं को संवैधानिक पद पर बने रहने का अधिकार क्यों होना चाहिए।
ऑनलाइन गेमिंग पर सख्त बिल
लोकसभा में प्रोडक्शन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 भी पेश किया गया। इसमें कई सख्त प्रावधान हैं—
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पूरी तरह बैन: रियल मनी गेम्स, सट्टा और जुए जैसे पैसों के लिए खेले जाने वाले ऑनलाइन गेम पूरी तरह बैन होंगे।
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सजा-जुर्माना: नियम तोड़ने पर 3 साल की जेल और 1 करोड़ रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
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विज्ञापन पर रोक: ऐसे प्लेटफॉर्म्स को विज्ञापन देने पर 2 साल जेल या 50 लाख रुपए तक जुर्माना।
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नियामक निकाय: नेशनल ऑनलाइन गेमिंग कमीशन (NOGC) बनाया जाएगा, जो गेम्स को रेगुलेट और लाइसेंस देगा।
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अपवाद: ई-स्पोर्ट्स जैसे मनोरंजन और शैक्षिक उद्देश्य वाले गेम्स को छूट मिलेगी।
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सख्त निगरानी: आधार वेरिफिकेशन, गेमिंग टाइम लिमिट, बच्चों की सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी जैसे प्रावधान भी जोड़े गए हैं।