जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में प्रशासनिक कार्यशैली में बड़ा और चौंकाने वाला बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले कलेक्टरों के बार-बार हो रहे तबादलों पर नियंत्रण करने वाली सरकार अब उनकी कार्यक्षमता की गहराई से पड़ताल कर रही है। सरकार ने अब तय कर लिया है कि जिलों के कलेक्टरों की परफॉर्मेंस सिर्फ कागज़ी रिपोर्ट या कॉल सेंटर फीडबैक पर नहीं, बल्कि 400 से अधिक ठोस और डायनॉमिक पैरामीटर्स के आधार पर तय होगी। इस पूरी कवायद का मकसद है — प्रशासनिक जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभाने वाले अधिकारियों को पहचानना और काम में लापरवाही बरतने वालों की असलियत उजागर करना।
अब तक सरकार स्टेट कॉल सेंटर के माध्यम से आम जनता से फीडबैक लेकर परफॉर्मेंस रेटिंग तय कर रही थी, लेकिन कई जिलों में अच्छा काम करने वाले कलेक्टरों की रेटिंग भी कमजोर आ रही थी। इससे स्पष्ट हुआ कि मौजूदा सिस्टम में गंभीर खामियां हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मई माह की समाधान ऑनलाइन बैठक में इस मुद्दे को उठाया और सभी 55 जिलों के कलेक्टरों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि सरकार के पास उनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट मौजूद है, लेकिन इस बार इसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
रेटिंग सिस्टम में शामिल होंगे डायनॉमिक पैरामीटर
एमपीएसईडीसी के सीईओ आशीष वशिष्ठ ने जानकारी दी कि अब परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार करने के लिए राज्य के सभी विभागों से जुड़े पोर्टल को जोड़ा गया है। हर विभाग से योजनाओं के ऑनलाइन डेटा लिए जा रहे हैं और इन्हीं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इसके तहत स्थायी इंडिकेटर के साथ-साथ डायनॉमिक पैरामीटर्स भी जोड़े जा रहे हैं — जैसे, समयानुसार शासन की प्राथमिकताएं।
उदाहरण के लिए, गर्मियों में गेहूं खरीदी, मानसून में बाढ़ राहत, जून-जुलाई में शिक्षा संस्थानों में प्रवेश, त्योहारी सीजन में कानून व्यवस्था, और इस वर्ष घोषित “उद्योग एवं रोजगार वर्ष” के चलते उद्योगों की स्थापना से जुड़े कार्य — सभी को रेटिंग के लिए महत्वपूर्ण माना जाएगा।
400 से अधिक मापदंडों पर होगी निगरानी
नई व्यवस्था के अंतर्गत हर जिले के कलेक्टर का मूल्यांकन 400 से ज्यादा मानकों के आधार पर किया जाएगा। इसमें केवल आंकड़े ही नहीं बल्कि योजनाओं की ग्राउंड इम्प्लीमेंटेशन, नवाचार, जनसुनवाई समाधान, जनकल्याणकारी योजनाओं में प्रगति, महिला सशक्तिकरण, डिजिटल पोर्टल्स पर उपस्थिति और प्रशासनिक पारदर्शिता जैसे कई पहलू शामिल हैं।
अब नहीं चलेगी “ऊपरी रेटिंग”: सरकार बनाना चाहती है फुलप्रूफ सिस्टम
मुख्यमंत्री मोहन यादव की स्पष्ट मंशा है कि परफॉर्मेंस रिपोर्ट ऐसी हो, जिस पर कोई सवाल न उठा सके। इसी उद्देश्य से नया फॉर्मूला इतना मजबूत बनाया जा रहा है कि चाहे कोई अफसर अच्छा काम करे या लापरवाही बरते — आंकड़ों की भाषा ही उसकी असली पहचान बताए।
बीते कुछ दिनों में जब कुछ कलेक्टरों ने अपनी कमजोर रेटिंग को लेकर जानकारी जुटाई, तो उन्हें पता चला कि कई बार सिस्टम में तकनीकी गड़बड़ियों या सीमित पैरामीटर्स के कारण उनकी मेहनत ठीक से दर्ज ही नहीं हो पाई थी। ऐसे फीडबैक के बाद सरकार ने रिपोर्टिंग सिस्टम को और पॉवरफुल बनाने की प्रक्रिया शुरू की है।
कोरोना काल में तेज़ी से हुई थी शुरुआत, लेकिन फिर थमा काम
याद दिला दें कि मार्च 2020 में शिवराज सरकार के सत्ता में लौटने के बाद कोरोना महामारी के समय दो वर्षों तक हर माह कलेक्टरों की रिपोर्ट तैयार होती थी। समाधान ऑनलाइन बैठकों के दौरान खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिनभर बैठकों में बैठकर कलेक्टरों की कार्यशैली की समीक्षा करते थे। लेकिन चुनावी वर्ष 2023 के दौरान यह प्रक्रिया अचानक रोक दी गई और अप्रैल 2025 तक परफॉर्मेंस रेटिंग का काम ठप रहा।
अब मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस काम को फिर से शुरू कर इसे अधिक सख्त, वैज्ञानिक और परिणामोन्मुखी बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।
क्या है आगे की रणनीति?
सरकार की योजना है कि आगामी दो महीनों में यह रेटिंग सिस्टम पूरी तरह तैयार हो जाएगा और फिर हर महीने उसी के आधार पर कलेक्टरों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट जारी की जाएगी। इसका सीधा असर उनके स्थानांतरण, प्रमोशन, और सम्मान जैसी प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर भी होगा।