गंगाजल और काशी: पवित्रता, मोक्ष और परंपराओं का गूढ़ रहस्य! मोक्ष की नगरी काशी से गंगाजल बाहर ले जाना अशुभ क्यों?

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

भारत की सबसे प्राचीन नगरी बनारस, जिसे काशी भी कहते हैं। यह वह पवित्र स्थान है, जिसकी स्थापना स्वयं भगवान शंकर ने की थी। यह केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि मोक्ष की नगरी है, यहाँ जो भी जीव या इंसान प्राण त्यागता है, उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि काशी के गंगाजल को घर ले जाना वर्जित माना जाता है?

गंगा नदी को सनातन धर्म में अत्यंत पावन और जीवनदायिनी माना गया है। इसका जल कभी खराब नहीं होता क्योंकि इसके उद्गम स्थल में ऐसे प्राकृतिक खनिज होते हैं, जो इसे शुद्ध बनाए रखते हैं। यही कारण है कि हर पूजा-पाठ में गंगाजल का विशेष महत्व होता है, और लोग इसे अपने घर ले जाकर पूजा में उपयोग करते हैं। लेकिन जब बात काशी की आती है, तो यहाँ की परंपरा कुछ अलग है।

काशी मोक्ष की नगरी है जहाँ हर दिन हजारों लोग अपने अंतिम समय में आते हैं। इस नगरी में मृत्यु को मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है, और यहाँ जलसमाधि लेने वाले जीवों की आत्माएँ गंगा के प्रवाह में विलीन हो जाती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति किसी को काशी आने के लिए प्रेरित करता है, वह पुण्य प्राप्त करता है। लेकिन इसके विपरीत, अगर कोई काशी से किसी जीव को बाहर ले जाता है, तो वह पाप का भागी बनता है। यही नियम गंगा जल और गीली मिट्टी पर भी लागू होता है।

ऐसे में आइए आपको बताते हैं यहाँ से गंगा जल घर क्यों नहीं ले जाना चाहिए?

  1. जीवों के मोक्ष में बाधा – गंगा जल में असंख्य जीव-जन्तु और कीटाणु समाहित रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति काशी से गंगाजल ले जाता है, तो वह इन जीवों को भी अपने साथ ले जाता है। इससे उनकी मोक्ष यात्रा बाधित होती है और यह धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना जाता है।
  2.  मृतकों की राख का प्रवाह – काशी में हर दिन सैकड़ों लोगों का दाह संस्कार होता है, और उनकी राख गंगा में प्रवाहित की जाती है। मान्यता है कि अगर कोई काशी से गंगाजल ले जाता है, तो वह मृतकों के अंश को भी अपने घर ले जाता है, जिससे उनकी मोक्ष प्राप्ति में रुकावट आ सकती है।
  3.  गंगाजल और गीली मिट्टी का विशेष महत्व – काशी की मिट्टी को अत्यंत पवित्र माना जाता है, लेकिन इसे बाहर ले जाना उचित नहीं है। क्योंकि यह भी वहीं की दिव्य ऊर्जा और संतुलन का हिस्सा होती है।

जो भी भक्त काशी दर्शन करने जाते हैं, उन्हें वहाँ गंगा स्नान जरूर करना चाहिए और शिवलिंग पर जल अर्पण करना चाहिए, लेकिन गंगाजल को घर ले जाने से बचना चाहिए।

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