जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में ऐसी कई जड़ी-बूटियां हैं जिनकी ताकत विज्ञान भी मान चुका है। इन्हीं में से एक है बाकुची—जिसे बावची या बकुची के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा पद्धति में बाकुची को एक अद्भुत औषधि माना गया है। यह न सिर्फ त्वचा रोगों में राहत देती है, बल्कि दिमाग, पाचन, हड्डियों और प्रजनन क्षमता तक को प्रभावित करती है।
बाकुची के बीजों में एक विशेष यौगिक प्सोरालेन पाया जाता है, जो सूरज की रोशनी के संपर्क में आकर त्वचा में मेलानिन उत्पादन को बढ़ाता है। इसी गुण के चलते यह सफेद दाग (विटिलिगो), सोरायसिस, एग्जिमा और खुजली जैसे जटिल रोगों में भी चमत्कारी रूप से कारगर है। भारत सरकार का आयुष मंत्रालय भी बाकुची के इन गुणों को मान्यता दे चुका है।
त्वचा के लिए बाकुची का तेल एक प्राकृतिक उपचार है। इसके नियमित प्रयोग से त्वचा पर निखार आता है और संक्रमण से बचाव होता है। डैंड्रफ से परेशान लोग बाकुची बीजों से बने तेल का उपयोग सिर में करके राहत पा सकते हैं। यही नहीं, बाकुची कफ और वात दोषों को संतुलित करने में भी मददगार मानी जाती है, जिससे यह पाचन, मूत्र विकार, पेट के कीड़े, घाव, और बवासीर जैसे रोगों में भी लाभ देती है।
इसके एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों की बीमारियों में असरदार माने जाते हैं। आधुनिक शोधों के अनुसार, बाकुची में मौजूद कुछ जैविक तत्व कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में भी मदद कर सकते हैं। इतना ही नहीं, बाकुची ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने और प्रजनन क्षमता बढ़ाने में भी सहायक हो सकती है।
लेकिन ध्यान रखें—जहाँ इसके फायदे अनगिनत हैं, वहीं इसके गलत इस्तेमाल से फोटोसेंसिटिविटी, यानि धूप में जलन, खुजली, और त्वचा पर रिएक्शन जैसे दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। इसलिए बाकुची का उपयोग बिना किसी विशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य या डॉक्टर की सलाह के कभी न करें।