भोपाल में 1834 करोड़ की ड्रग फैक्ट्री का पर्दाफाश: शोएब लाला का खौफनाक नेटवर्क अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर, 6 महीने बाद भी खाली हाथ जांच एजेंसियां

You are currently viewing भोपाल में 1834 करोड़ की ड्रग फैक्ट्री का पर्दाफाश: शोएब लाला का खौफनाक नेटवर्क अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर, 6 महीने बाद भी खाली हाथ जांच एजेंसियां

जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

भोपाल के बगरोदा स्थित इंडस्ट्रियल क्षेत्र में जो कुछ हुआ, उसने देशभर की सुरक्षा एजेंसियों को हिला कर रख दिया। राजधानी की एक सुनसान फैक्ट्री में, जहां आमतौर पर मशीनों की आवाज गूंजती है, वहां खामोशी के बीच 1834 करोड़ की अवैध मेफा ड्रोन ड्रग फैक्ट्री चलाई जा रही थी। इस फैक्ट्री में हर रात ज़हर का निर्माण होता और हर सुबह, मौत बोरियों में भरकर बॉक्सों में सील कर दी जाती थी। और इस पूरे काले कारोबार का मास्टरमाइंड था—कुख्यात ड्रग तस्कर शोएब लाला, जो अब भी फरार है।

खुद आता था माल लेने, किसी पर नहीं करता था भरोसा

एनसीबी द्वारा किए गए खुलासे चौंकाने वाले हैं। शोएब लाला जैसा बड़ा ड्रग माफिया किसी के हाथ में जिम्मेदारी नहीं देता था। ड्रग्स की बोरियों को खुद ही साथी हरीश आंजना के साथ लेकर ट्रक और कार में भरता और ठिकाने लगाता। ड्रग्स इतने महंगे और खतरनाक थे कि उन पर किसी तीसरे की नजर तक शोएब को बर्दाश्त नहीं थी।

फर्जी सिम, वॉट्सऐप कॉल और डिजिटल भूत

शोएब लाला तकनीकी तौर पर बेहद शातिर है। वह केवल वॉट्सऐप कॉल्स का इस्तेमाल करता था, ताकि कोई डिजिटल सबूत ना बचे। हर बार नए नंबर से संपर्क करता था। सभी सिम फर्जी दस्तावेजों पर खरीदी गई थीं। ड्रग बनाने वाले केमिस्ट सान्याल बाने को भी एक फर्जी सिम दी गई थी। शोएब लाला ने उसे 2 लाख रुपये की मासिक सैलरी पर रखा था। लेकिन ये सैलरी भी सीधे बैंक से नहीं, हवाला के माध्यम से दी जाती थी—इतनी गहराई से बना हुआ था ये अवैध नेटवर्क।

बिना एग्रीमेंट ली फैक्ट्री, फार्मासिस्ट की आड़ में ज़हर की खेप

इस खतरनाक ऑपरेशन में अमित चतुर्वेदी भी अहम कड़ी निकला। एनसीबी की पूछताछ में उसने खुलासा किया कि बगरोदा इंडस्ट्रियल एरिया की F-63 फैक्ट्री उसने शोएब के कहने पर ली थी। यह फैक्ट्री एस.के. सिंह की थी, लेकिन कोई भी कानूनी एग्रीमेंट नहीं किया गया था।
अमित फार्मासिस्ट की आड़ में काम करता था, लेकिन हकीकत ये थी कि उसी के ज़रिए ड्रग बनाने वाले खतरनाक केमिकल्स और उपकरणों की खरीद-फरोख्त की जाती थी। दस्तावेजों में यह साफ हुआ कि उसकी भूमिका केवल सप्लायर की नहीं, संपूर्ण नेटवर्क ऑपरेटर की थी।

साजिश का ठिकाना: देवधर स्प्रिंग वैली

ड्रग माफिया शोएब लाला ने फ्लैट D-503, देवधर स्प्रिंग वैली, कटारा हिल्स में आरामगाह बनाई थी। इस फ्लैट को 15,000 रुपए के किराए पर दलाल आशीष गर्ग के माध्यम से सौरभ श्रीवास्तव से लिया गया था। यहां शोएब और उसका गिरोह फैक्ट्री से निकलने के बाद ठहरता था और अगली डिलीवरी की तैयारी करता था।

ड्रग पैकिंग का खौफनाक तरीका

जानकारी के अनुसार, तैयार ड्रग को 1-1 किलो के पैकेटों में बांटा जाता था। हर पैकेट को टेपिंग कर सुरक्षित किया जाता था। फिर 20 किलो की बोरियों में इन्हें भरकर प्लास्टिक के बॉक्स में बंद किया जाता था। यह पैकिंग इतनी प्रोफेशनल थी कि अंतरराष्ट्रीय तस्करी के लिए तैयार माल जैसा ही प्रतीत होता था।

शोएब अब भी फरार, क्या पकड़ से बाहर रहेगा?

6 महीने पहले एनसीबी ने जब यह छापा मारा था, तो देशभर में सनसनी फैल गई थी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि मुख्य आरोपी शोएब लाला अब भी फरार है। उसकी गिरफ्तारी के बिना यह केस अधूरा है। उसका नेटवर्क आज भी सक्रिय हो सकता है।

एनसीबी ने इस मामले में कई गिरफ्तारियां की हैं, लेकिन मुख्य साजिशकर्ता तक न पहुंच पाना पूरे सिस्टम पर बड़ा सवालिया निशान है।

Leave a Reply