रक्षाबंधन से पहले फांसी की सजा! क्या भारत बचा पाएगा अपनी बेटी निमिषा को? यमन में फांसी का इंतजार कर रही भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की जिंदगी अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी!

You are currently viewing रक्षाबंधन से पहले फांसी की सजा! क्या भारत बचा पाएगा अपनी बेटी निमिषा को? यमन में फांसी का इंतजार कर रही भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की जिंदगी अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी!

जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

2025 का रक्षाबंधन जैसे-जैसे करीब आ रहा है, एक मां अपनी बेटी को जिंदगी की डोर से जोड़ने के लिए यमन की राजधानी सना में हर दिन लड़ाई लड़ रही है। ये कहानी है केरल की नर्स निमिषा प्रिया की, जिसे 16 जुलाई को यमन में फांसी दी जानी है। लेकिन भारत की सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और केंद्र सरकार को राजनयिक दखल देने के निर्देश देने की मांग पर अब 14 जुलाई को सुनवाई करने जा रही है।

बता दें, निमिषा प्रिया 2008 में महज 19 साल की उम्र में यमन गई थीं, जहां एक सरकारी अस्पताल में उन्हें नर्स की नौकरी मिली। कुछ साल बाद शादी और बेटी के जन्म के बाद उन्होंने यमन में ही एक क्लिनिक खोलने का फैसला किया। मगर यमन के कानूनों के अनुसार लोकल पार्टनर की जरूरत थी, और यहीं से उनकी जिंदगी ने भयानक मोड़ ले लिया।

महदी नामक यमनी नागरिक से साझेदारी की, जिसने कुछ समय बाद निमिषा के पासपोर्ट को जब्त कर लिया, शारीरिक उत्पीड़न शुरू कर दिया और क्लिनिक का सारा मुनाफा हड़प लिया। जब निमिषा ने विद्रोह किया तो उल्टा उसी पर आरोप लगा दिए गए। जुलाई 2017 में, परेशान होकर निमिषा ने महदी को दवा की ओवरडोज दी, जिससे उसकी मौत हो गई। घटना के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और हत्या के आरोप में मौत की सजा सुना दी गई।

शरिया कानून के अनुसार, अगर पीड़ित परिवार ब्लड मनी स्वीकार कर ले, तो मौत की सजा को माफ किया जा सकता है। इसी उम्मीद में निमिषा की मां ने अपनी संपत्ति बेच दी, देशभर में क्राउडफंडिंग की, और ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ का गठन हुआ। एक केरल के बिजनेसमैन ने 1 करोड़ रुपये तक देने की घोषणा की। मगर महदी के परिवार ने आज तक ब्लड मनी लेने से इनकार कर दिया।

विदेश मंत्रालय ने दावा किया है कि वह लगातार यमन प्रशासन और निमिषा के परिवार के संपर्क में है। अब इस संवेदनशील और अंतरराष्ट्रीय मानवीय मुद्दे पर भारत की सर्वोच्च अदालत ने 14 जुलाई को सुनवाई तय की है, जिसमें केंद्र सरकार से सक्रिय राजनयिक प्रयास करने की अपेक्षा की जा रही है।

मां की आंखों में अब भी एक ही सपना है – “राखी बांधूं, तो बेटी के हाथ पर।” अब देखना होगा कि 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में क्या फैसला होता है, और क्या भारत एक बेटी को उसकी आखिरी सांस से पहले न्याय दिला पाएगा या नहीं।

Leave a Reply