जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
आज देशभर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। सूर्योदय से लेकर रात तक अष्टमी तिथि रहेगी और इसी दौरान भक्तजन उपवास, पूजन और भजन-कीर्तन के जरिए भगवान का स्मरण करेंगे। जन्माष्टमी का पर्व हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में इसी तिथि को आधी रात, रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
श्रीकृष्ण की पूजा के लिए परंपरागत रूप से जल, दूध, पंचामृत, नारियल, चंदन-अक्षत, अबीर-गुलाल, जनेऊ, हार-फूल, फल, तुलसी पत्र, माखन-मिश्री, सूखे मेवे, मिठाई, पान और धूप-दीप की व्यवस्था की जाती है।
पूजा से पहले भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या झांकी को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और आभूषणों से सजाया जाता है। इसके बाद ‘क्लीं कृष्णाय नमः’ मंत्र का उच्चारण करते हुए जल, दूध और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। भोग में माखन-मिश्री, सूखे मेवे, फल और तुलसी पत्र चढ़ाए जाते हैं।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि श्रीकृष्ण को कुछ विशेष फूल और पत्ते अत्यंत प्रिय हैं। इनमें फूलों में – वैजयंती, कमल, मालती, गुलाब, गेंदा, केवड़ा, कनेर और मौलश्री, जबकि पत्रों में – तुलसी, बेलपत्र, अपामार्ग, भृंगराज, मयूरपंख, दूर्वा, कुशा और शमी का विशेष महत्व माना गया है। इन फूल-पत्तों से पूजा करने पर भक्त को सुख-समृद्धि और मनोकामना सिद्धि की प्राप्ति होती है।
व्रत का महत्व और नियम
जन्माष्टमी का व्रत ब्रह्म मुहूर्त से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय तक चलता है। व्रती इस दिन अन्न का सेवन नहीं करते और केवल फलाहार या सूखे मेवे खा सकते हैं। रात में भगवान के जन्म की आरती के बाद फलाहार से परहेज करने की परंपरा है, हालांकि आवश्यकता पड़ने पर दूध का सेवन किया जा सकता है।
धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत करने से कष्ट दूर होते हैं और जीवन में विजय मिलती है। यही कारण है कि इसे “कठिनाइयों को हरने और सफलता दिलाने वाला व्रत” कहा जाता है।
मथुरा-वृंदावन में जन्मोत्सव का उल्लास
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और लीलास्थली वृंदावन में जन्माष्टमी का उल्लास चरम पर है। वृंदावन में इस बार करीब 10 लाख श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। बांके बिहारी मंदिर और जन्मभूमि परिसर में दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लगी हैं।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर की सजावट इस बार ‘ऑपरेशन सिंदूर थीम’ पर की गई है। ठाकुरजी के फूल बंगले को विशेष रूप से कोलकाता और बेंगलुरु से मंगाए गए सिंदूरी फूलों से सजाया गया है। ठाकुरजी की पोशाक को मथुरा के कारीगरों ने छह महीने की मेहनत से तैयार किया है, जिसमें सोने-चांदी के तार और इंद्रधनुष के सात रंगों का उपयोग किया गया है।
देशभर में भव्य आयोजन
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पटना इस्कॉन मंदिर में इस बार ‘वृंदावन थीम’ पर सजावट की गई है। पूरे मंदिर को 80 क्विंटल फूलों से सजाया गया है, जो थाईलैंड, कोलकाता, बैंगलोर और बैंकॉक से मंगाए गए हैं।
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रायपुर के टाटीबंध इस्कॉन टेंपल में 3 दिन का जन्माष्टमी महोत्सव चल रहा है। यहां भगवान को भोग लगाने के लिए 1100 किलो मालपुआ तैयार किया गया है।
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ग्वालियर के फूलबाग स्थित प्राचीन गोपाल मंदिर में आज जन्माष्टमी पर राधा-कृष्ण को हीरे, पन्ना, माणिक, पुखराज और नीलम जड़े करीब 100 करोड़ के आभूषण पहनाए जाएंगे। सुरक्षा के लिए 200 जवान और 50 सीसीटीवी कैमरे तैनात हैं।
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पुणे में इस बार दही-हांडी मंडलियों ने डीजे की जगह ढोल-ताशा के साथ पारंपरिक तरीके से उत्सव मनाने का निर्णय लिया है।