जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
देश की न्यायपालिका को हिला देने वाले इस केस में अब सरकार ने कड़े कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज और फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यरत जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए केंद्र सरकार संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया में जुट गई है। खबर है कि लोकसभा सांसदों के हस्ताक्षर जुटाए जा रहे हैं और 21 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में यह प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।
दरअसल, पूरे मामले की शुरुआत उस रात से हुई जब 14 मार्च को लुटियंस दिल्ली स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के स्टोर रूम में रहस्यमयी तरीके से आग लग गई। जब दमकल कर्मियों ने आग बुझाई तो वहां से 500-500 के अधजले नोटों के बोरे मिले। इसके बाद पूरे देश में सनसनी फैल गई।
सुप्रीम कोर्ट की जांच में क्या सामने आया?
इस गंभीर मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू की अध्यक्षता में तीन जजों की समिति गठित की। 10 दिन की जांच में पैनल ने 55 गवाहों से पूछताछ की और घटनास्थल का मुआयना किया। 64 पेज की रिपोर्ट में जो निष्कर्ष आए, वो और भी चौंकाने वाले थे।
रिपोर्ट में कहा गया कि स्टोर रूम पर जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का पूरा नियंत्रण था। यहां से जले हुए नोट निकालने में उनके घरेलू कर्मचारियों की भूमिका भी सामने आई। कर्मचारियों ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने वहां से अधजले नोट निकाले। सबसे हैरानी की बात यह रही कि जस्टिस वर्मा की बेटी ने इन कर्मचारियों की आवाज पहचानने से इनकार कर दिया, जबकि वीडियो में उनकी आवाज साफ तौर पर मैच हो गई।
रिपोर्ट की कुछ चौंकाने वाली बातें
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चश्मदीदों के बयान: दिल्ली फायर सर्विस और पुलिस के अफसरों समेत 10 चश्मदीदों ने जले हुए नोट देखे थे।
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वीडियो सबूत: घटनास्थल के वीडियो और फोटो भी कर्मचारियों की गवाही को पुख्ता कर रहे थे।
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कोई पुलिस रिपोर्ट नहीं: जस्टिस वर्मा ने इस पूरी घटना को अपने खिलाफ साजिश बताया, लेकिन पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई।
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गोपनीय सुरक्षा: उनके सरकारी आवास पर हमेशा 1+4 सिक्योरिटी गार्ड और एक PSO तैनात रहते थे। बिना अनुमति कोई भी अंदर नहीं जा सकता था। ऐसे में सवाल उठता है कि लाखों-करोड़ों की नकदी वहां कैसे पहुंची?
संसद में महाभियोग की तैयारी
संसद में किसी जज को हटाने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं। सूत्रों के मुताबिक लोकसभा सांसदों से दस्तखत लिए जा चुके हैं। खुद संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू कह चुके हैं कि मानसून सत्र में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा।
यह मामला उस वक्त और गंभीर हो गया जब सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोप इतने ठोस और गंभीर हैं कि उनके खिलाफ महाभियोग चलाना जरूरी है।
पुराना घोटाला भी जुड़ा
जस्टिस वर्मा पहले भी विवादों में रह चुके हैं। 2018 में गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में किसानों के नाम पर लिए गए करीब 97.85 करोड़ रुपए के लोन घोटाले में उनका नाम सामने आया था। उस समय वे मिल के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। CBI ने FIR दर्ज की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस मामले की जांच बंद करा दी।