जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
शराब उद्योग से जुड़ा एक बड़ा कानूनी विवाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सुलझ गया है। यह विवाद फ्रांस की बहुराष्ट्रीय कंपनी पर्नोड रिकार्ड और मध्यप्रदेश के इंदौर की कंपनी जेके इंटरप्राइजेज के बीच था। दोनों कंपनियों के प्रोडक्ट्स के नाम में एक ही शब्द ‘प्राइड’ आने के कारण विवाद अदालत तक पहुंचा।
क्या है पूरा मामला?
फ्रांस की पर्नोड रिकार्ड कंपनी भारत में ब्लेंडर्स प्राइड, इंपीरियल ब्लू और सीग्राम्स जैसे लोकप्रिय ब्रांड बनाती है। कंपनी का आरोप था कि इंदौर की जेके इंटरप्राइजेज, करणवीर सिंह छाबड़ा के नेतृत्व में, लंदन प्राइड नाम से व्हिस्की बेच रही है।
पर्नोड रिकार्ड का कहना था कि छाबड़ा ने न सिर्फ ब्रांडनेम कॉपी किया बल्कि बोतल की पैकेजिंग, रंग और लेबल भी उनके प्रोडक्ट इंपीरियल ब्लू से काफी मेल खाते हैं। कंपनी को आशंका थी कि उपभोक्ता ब्लेंडर्स प्राइड और लंदन प्राइड के बीच भ्रमित हो सकते हैं।
पर्नोड रिकार्ड की दलीलें
पर्नोड ने अदालत में तीन प्रमुख बातें रखीं—
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दोनों कंपनियों के नाम में ‘प्राइड’ मुख्य तत्व है।
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बोतल का आकार, पैकेजिंग और रंग संयोजन काफी हद तक समान हैं।
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शराब उद्योग में ब्रांड की पहचान अक्सर दृश्य तत्वों से होती है, जिससे उपभोक्ता भ्रमित हो सकता है।
जेके इंटरप्राइजेज का पक्ष
वहीं, जेके इंटरप्राइजेज की ओर से कहा गया—
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लंदन प्राइड और ब्लेंडर्स प्राइड पूरी तरह अलग नाम हैं।
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शराब उद्योग में ‘प्राइड’ एक सामान्य शब्द है, जिसे कई कंपनियां इस्तेमाल करती हैं।
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पर्नोड रिकार्ड यह साबित नहीं कर पाया कि वास्तव में कोई उपभोक्ता गुमराह हुआ।
मामला पहले वाणिज्यिक अदालत और फिर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों कंपनियों की व्हिस्की की बोतलें दो बार पेश की गईं।
5 जनवरी 2024 को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच बैठी। जब बोतलें कोर्ट में रखी गईं तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने हंसते हुए कहा—“आप बोतलें साथ लाए हैं?” इस पर पर्नोड के वकील मुकुल रोहतगी ने जवाब दिया—“जी हां, फर्क दिखाने के लिए।”
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद पर फैसला सुनाया और कहा कि—
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ट्रेडमार्क का मूल्यांकन पूरे नाम से किया जाएगा, न कि किसी एक शब्द (जैसे ‘प्राइड’) से।
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पर्नोड का रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क ब्लेंडर्स प्राइड है, न कि सिर्फ ‘प्राइड’।
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शराब उद्योग में प्राइड एक सामान्य शब्द है, जिस पर किसी एक कंपनी का अधिकार नहीं हो सकता।
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प्रीमियम व्हिस्की खरीदने वाला वर्ग आमतौर पर शिक्षित और समझदार होता है, इसलिए भ्रम की संभावना नगण्य है।
इस फैसले के बाद यह साफ हो गया कि ब्लेंडर्स प्राइड और लंदन प्राइड, दोनों ब्रांड भारतीय बाजार में बने रहेंगे।
कानून के लिए मील का पत्थर
इस केस की खासियत यह रही कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार भारतीय ट्रेडमार्क कानून में Post-Sale Confusion (बिक्री के बाद का भ्रम) सिद्धांत को मान्यता दी।
उदाहरण के तौर पर— अगर किसी ने असली Gucci बैग खरीदा है, लेकिन बाजार में नकली Gucci बैग भी मौजूद है, तो असली खरीदार की प्रतिष्ठा और ब्रांड की पहचान पर असर पड़ता है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि शराब जैसे निजी उपभोग वाले उत्पादों में यह सिद्धांत सीधे लागू नहीं होगा।
एक्सपर्ट्स की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला केवल पर्नोड रिकार्ड और जेके इंटरप्राइजेज तक सीमित नहीं रहेगा। अब कंपनियां केवल सामान्य शब्दों जैसे प्राइड, गोल्ड, रॉयल, क्लासिक आदि पर विशेष अधिकार नहीं जता सकेंगी।
भविष्य में ट्रेडमार्क विवादों में कंपनियों को उपभोक्ता भ्रम का ठोस सबूत देना होगा। साथ ही, यह केस फैशन, लग्जरी और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में होने वाले विवादों पर भी असर डालेगा।